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आतंकियों के लिए मौत का दूसरा नाम है पहाड़ का बेटा मेजर प्रीतम सिंह कुंवर


हल्द्वानी: काम कोई और करता है लेकिन फल पूरी पीढ़ी को मिलता है। ऐसा होता है देश सेवा में ऐसा जरूर होता है। खेल के मैदान से युद्ध की रणभूमि में देश के तिरंगे को ऊंचा करने वालों का नाम इतिहास के सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो जाता है। उत्तराखण्ड का देश सेवा से नाता सदियों पुराना है।

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भारत के इतिहास में उत्तराखण्ड के कई वीरों के नाम स्वर्णिम शब्दों से लिखे जा चुके हैं। एक बार फिर देश की रक्षा करते दुश्मनों को मौत के घाट उतारने वाले उत्तराखण्ड के मेजर प्रीतम कुंवर को कीर्ति चक्र सम्मान मिलने जा रहा है। सोमवार 23 अप्रैल को राष्ट्रपति उन्हें अदम्य साहस और वीरता के लिए इस सम्मान से नवाजेंगे। बता दें कि कीर्ति चक्र भारत का शांति काल का सर्वोच्य वीरता का पदक है। यह सम्मान सैनिकों को असाधारण वीरता, प्रकट शूरता या बलिदान के लिए दिया जाता है। महावीर चक्र के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा सम्मान है।

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सैन्य अभियानों में अपने साहस और पराक्रम का परिचय देने वाले उत्तराखंड के जिला चमोली के पीपलकोटी के मठ गांव निवासी मेजर प्रीतम सिंह कुंवर को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया जाएगा। पिछले साल 15 अगस्त 2017 को उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित करने की घोषणा हुई थी। मेजर प्रीतम सिंह कुंवर के अलावा आतंकी हमले के दौरान अपनी जान की परवाह न करने वाले पांच जवानों को कीर्ति चक्र से सम्मानित करने की घोषणा हुई थी। इनमें से तीन जवानों को यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया है। जबकि गढ़वाल राइफल के मेजर प्रीतम सिंह कुंवर और सीआरपीएफ के कमांडेंट चेतन कुमार चीता को अद्भुत रणकौशल दिखाने के लिए सम्मान दिया जा रहा है। मेजर प्रीतम सिंह कुंवर बचपन से ही देश सेवा में अपना जीवन बिताना चाहते थे। उनके पिता नरेंद्र सिंह कुंवर भी रिटायर सुबेदार मेजर हैं, जो भारतीय सेना में लंबी सेवा दे चुके हैं। जबकि मां रूकमणी देवी गृहणी हैं। पिता नरेंद्र सिंह कुंवर ने अपने बेटे के इस सम्मान पर खुशी जताई है। पूरा परिवार सम्मान समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंच गया है। मेजर प्रीतम सिंह कुंवर को कीर्ति चक्र सम्मान मिलने से पूरी चमोली जिले में खुशी की लहर है।

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जानकारी दे किं 26 मई 2017 को उरी सेक्टर में 4 गढ़वाल राइफल के मेजर प्रीतम सिंह कुंवर के नेतृत्व में 17 सदस्यीय टीम ने लंबी मुठभेड़ के बाद सात आतंकवादियों को मार गिराया था। चेतन कुमार चीता भी जम्मू-कश्मीर के हाजिन सेक्टर में आतंकियों से लोहा लेते हुए बुरी तरह जख्मी हुए थे। उन्हें नौ गोलियां लगी थी, लेकिन इसके बाद भी भारत मां का ये शेर एक बार फिर खड़ा हो गया। चीता मूल रूप से राजस्थान से हैं।

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