देहरादूनः पहाड़ी इलाके इस वक्त सबसे बड़ी परेशानी से जूझ रहे हैं। उत्तराखण्ड के जंगलों में आग लगने से लाखों का नुकसान हो रहा है। आग ने अब विकराल रूप लेकर प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के साथ पर्यावरण को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है। नैनीताल में देखा जाये तो आग सड़कों में भी आने लगी है। टिहरी में भी आग थमने का नाम नहीं ले रही है। भिलंगना, बालगंगा, पौखाल, टिहरी और प्रतापनगर रेंज के जंगल आग से धधक रहे हैं। यह कह पाना मुश्किल है कि आग लगने से गर्मी बढ़ रही है या गर्मी से आग बढ़ रही है। इस वक्त गर्मी के मौसम में उत्तराखण्ड पर्यटन का केंद्र माना जाता है। पर जंगलों में लगी आग सड़कों में आने से उत्तराखण्ड के वो लोग जो पर्यटन पर ही निर्भर है वह सबसे ज्यादा परेशान दिखाई दे रहे है।
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टिहरी जिले में नरेंद्रनगर, मसूरी, टिहरी डैम वन प्रभाग और टिहरी वन प्रभाग के अंतर्गत इस वर्ष अब तक अग्निकांड की 55 घटनाएं हो चुकी है। जिससे 67 हेक्टेयर वन भूमि क्षेत्र में आग लगने से लाखों की वन संपदा को नुकसान पहुंचा है। उत्तराखंड वन विभाग की कमाई का जरिया कहे जाने वाले पेड़ जैसे बांज , चीड़ बुरांश और देवदार के पेड़ों पर सबसे ज्यादा नुकशान देखा जा सकता है। जबकी वन विभाग ने आग पर नियंत्रण करने के लिए कई क्षेत्रों में 133 क्रू स्टेशन , 336 फायर वाचर ,815 वन रक्षक, वन दरोगा, दैनिक श्रमिक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की तैनाती की है।इन सब सुविधा के साथ वनविभाग कुछ हद तक आग पर काबू करने में कामयाब रहा है। पर पुर्ण रूप से आग पर काबू नहीं पाया जा रहा है, जिसके कारण चमोली जिले में अब तक 10 लाख रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया जा रही है। अगर पिछले सात सालों की बात की जाये तो वन विभाग को 1करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान होने का अनुमान है। यह भी सोचने वाली बात है कि हर साल नुकसान होने के बावजूद विभाग कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रहा है?