
Dehradun: JNU: Protest: यूकेएसएससी भर्ती परीक्षा पेपर लीक प्रकरण को लेकर उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के बैनर तले चल रहा आंदोलन अब नए मोड़ पर पहुंच गया है। आरोप है कि इस आंदोलन में वामपंथी टूलकिट्स की सक्रियता बढ़ गई है, जिनके समर्थन में कांग्रेस भी खड़ी दिखाई दे रही है। आंदोलन के दौरान देहरादून परेड ग्राउंड में ऐसे भड़काऊ नारे लगे, जो पहले जेएनयू और जामिया जैसे कैंपसों में सुने जाते रहे हैं।
बेरोजगार संघ के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन बॉबी पंवार के नेतृत्व में उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा का रूप ले चुका है। कहा जा रहा है कि अब इसमें बाहरी वामपंथी संगठनों और लेफ्ट से जुड़े युवाओं की भी एंट्री हो चुकी है। सोशल मीडिया के जरिए भीड़ जुटाना, सरकार विरोधी नारेबाजी कराना और माहौल गरमाना इन टूलकिट्स की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।
चर्चा यह भी है कि इस आंदोलन को फंडिंग कहां से हो रही है और क्या इसमें बाहरी एजेंसियों की भूमिका है। बताया जा रहा है कि इनका एजेंडा बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों को कमजोर करना और चुनाव से पहले कांग्रेस के पक्ष में वातावरण तैयार करना है।
पेपर लीक मामले में खालिद मलिक और उसकी बहन साबिया के नाम सामने आने के बाद यह मुद्दा और गरमा गया। बीजेपी ने इसे “नकल जिहाद” करार दिया है। वहीं, आरोप है कि आंदोलनकारियों में बड़ी संख्या में मुस्लिम युवक-युवतियां भी शामिल हैं। इससे टूलकिट्स की सक्रियता पर और सवाल खड़े हो गए हैं।
देवभूमि उत्तराखंड में सरकार पहले से ही लव जिहाद, लैंड जिहाद और अन्य मुद्दों पर सख्त रुख अपनाए हुए है। वहीं, आरएसएस अपने स्थापना शताब्दी वर्ष मना रहा है, जिसके खिलाफ वामपंथी संगठन सक्रिय बताए जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यहां एक विचारधारा का टकराव साफ दिखाई दे रहा है, जिसमें कांग्रेस, वामपंथी संगठनों और कुछ धार्मिक संगठनों की मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या खालिद मलिक और साबिया के पीछे और भी शक्तियां काम कर रही हैं।
धामी सरकार का दावा है कि पिछले चार वर्षों में 25,000 से अधिक युवाओं को पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया के तहत नौकरियां दी गई हैं। विपक्ष पर आरोप है कि वह इस साख को चोट पहुँचाने के लिए टूलकिट्स के जरिए माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है।
फिलहाल देहरादून परेड ग्राउंड में लगे नारों और आंदोलन में शामिल अजनबी चेहरों को लेकर पुलिस और प्रशासन के सामने सतर्क रहने की चुनौती बढ़ गई है।






