हल्द्वानी: कश्मीर और हिमाचल के तर्ज पर अब उत्तराखंड भी सेब की पैदावार में देश का तीसरा बड़ा राज्य बनने की कवायद कर रहा है। इसकी शुरुआत भीमताल के फल पट्टी क्षेत्र से हो गई है। अगर किसानों ने बड़े पैमाने पर सेब की आधुनिक खेती अपनाई तो पहाड़ों में किसानों को न सिर्फ दोगुनी आमदनी मिलेगी बल्कि पलायन रुक कर रिवर्स पलायन शुरू हो जाएगा। ये सोचना है उत्तराखंड में रहने वाले किसान सुधीर चड्ढा का। पेड़ों में गुच्छो की तरह लटके ये चमकीले लाल रसीले सेब हिमाचल और कश्मीर की धरती में नहीं बल्कि अब उत्तराखंड की पहचान भी बनेंगे। सेब के बाग को विकसित करने की कवायद शुरू हो गई है। उत्तराखंड में रहने वाले किसान सुधीर चड्ढा ने सिर्फ सेब की खेती को उत्तराखंड में बढ़ावा दिया है बल्कि 21 वी सदी के अत्याधुनिक खेती अपनाकर 12 प्रकार की सेब की प्रजातियों को उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर विकसित भी किया है।
भीमताल के चाफ़ी स्थित गांव में सुधीर चड्डा ने सेब की नई पौध विकसित करते हुए ऑल वेदर सेब की प्रजाति का डेमो भी शुरू कर दिया है। जिसको देखने के लिए खुद पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक पहुंच रहे हैं। खुद वैज्ञानिकों का मानना है की आधुनिक सेब की खेती न सिर्फ किसानों के लिए लाभदायक है बल्कि उत्तराखंड से पलायन रोकने में भी बड़ी कारगर साबित हो सकती है।
भारत में विदेशों से चार लाख टन सेब का आयात हो रहा है जबकि यहां की धरती का क्लाइमेट और एनवायरमेंट सेब की पैदावार के लिए मुफीद बैठता है, बावजूद इसके सेब की खेती को अब तक बढ़ावा नहीं दिया जा रहा था। लेकिन आधुनिक सेब की खेती ने न सिर्फ किसान सुधीर चड्डा को आत्मनिर्भर बनाया है बल्कि उनकी फसल की पैदावार देख पूरे उत्तराखंड में अब तक 100 से अधिक सेब के बागान भी स्थापित किए गए हैं।
वर्तमान में उत्तराखंड जिन सेब की प्रजातियों के लिए बेहतर पाया गया है उनमें से रेड डिलीशियस, स्कारलेट स्पर , गाला, आई डी 1 , आई डी 2 सहित किंग रॉट जैसे प्रमुख हैं जिनका बाजार भाव ₹159 प्रति किलो मिल रहा है। वैज्ञानिकों का भी मानना है कि अगर छोटे-छोटे काश्तकारों को भी सरकार सब्सिडी दे और आधुनिक सेब के पौधे उपलब्ध करा सके तो न सिर्फ उत्तराखंड शिव के पैदावार में देश में तीसरा स्थान प्रदान कर सकता है बल्कि यहां के किसानों को पलायन को रोककर आत्मनिर्भर भी बना सकता है। समुद्र तल से 12 सौ मीटर की ऊंचाई से सेब की पैदावार शुरू करने की इस आधुनिक खेती को सरकार और वैज्ञानिकों के सहयोग से उत्तराखंड के किसानों को प्रोत्साहित किया गया तो आने वाले समय में दुनिया में कश्मीरी और हिमाचली के बाद उत्तराखंड़ी सेब का स्वाद भी लोगों के जुबान पर होगा।