हरिद्वार: गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए लंबे वक्त से कार्य चल रहा है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के दशकों पहले एक सपना देखा था जो अब पूरा होने जा रहा है। गंगा को बचाने के लिए संतों ठीक 12 वर्ष पहले हरिद्वार कुंभ ने गंगा में मृत संतों की जल समाधि रोकने का प्रस्ताव पारित किया था। बता दें कि वर्ष 2010 में हरिद्वार कुंभ से ठीक एक वर्ष पहले जब कुंभ तैयारियों के लिए अखाड़ा परिषद की बैठक चल रही थी, तब अध्यक्ष श्रीमंहत ज्ञानदास और महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि ने संयुक्त रूप से भू-समाधि का प्रस्ताव रखा था।
संतों का कहना था कि वे गंगा प्रदूषण मुक्त बनाने के कार्य में योगदान देना चाहते हैं। हरिद्वार कुंभ में जगाई गई अलख का असर बाकी तीन कुंभ नगरों प्रयाग, उज्जैन और नासिक पर भी पड़ेगा। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की राह में यह एक बड़ा कदम होगा। संन्यासियों के जूना, अग्नि, आह्वान, आनंद, अटल, महानिर्वाण और निरंजनी सातों अखाड़ों में मृत संतों को गंगा जल में समाधि देने की परम्परा है। प्रतिवर्ष हरिद्वार में संन्यासियों के जितने भी संत ब्रह्लीन होते हैं, वे सभी गंगा में बहाए जाते हैं।
अखाड़ा परिषद के इस प्रस्ताव पर तत्कालीन निशंक सरकार ने भी सहमति जताई थी, लेकिन भूमि का चयन पर फैसला नहीं हो पाया था। इसके बाद यहीं मांग उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से प्रयाग, नासिक तथा उज्जैन कुंभ नगरों के लिए की गई। अब अगले वर्ष होने वाले कुंभ से पूर्व अखाड़ा परिषद ने भू-समाधि के लिए भूमि हासिल करना प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था।
मुख्यमंत्री से इस संबंध में तीन बार आग्रह किया गया। मुख्यमंत्री के निर्देश पर जिला और मेला प्रशासन सक्रिय हो गए हैं। श्रीमहंत हरि गिरि का कहना है कि हरिद्वार में भूमि मिलते ही जल समाधि बंद कर दी जाएगी। गंगा, यमुना, शिप्रा और गोदावरी को प्रदूषण मुक्त करने के काम में अखाड़ा परिषद पूर्ण योगदान देगी।