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दो आदेश के बाद भी नहीं बन सकी भारत-नेपाल सीमा से जोड़ने वाली सड़क


पिछले कुछ दिनों में भारत नेपाल के रिश्तों में काफी खटास आई है। उत्तराखंड के चंपावत जिले की टनकपुर से लगी नेपाल सीमा तारबाड़ के विवाद की वजह से चर्चा में है। इसी नेपाल सीमा से लगी निर्माणाधीन टीजे (टनकपुर-जौलजीबी) रोड के दूसरे पैकेज में निविदा विवाद के चलते करीब 35 महीने से काम लटका हुआ है। वहीं, री-टेंडरिंग पर रोक हटने के दस महीने और आर्बिटेशन का फैसला आने के 54 दिन बाद भी कोई प्रगति नहीं है। न तो आर्बिटेशन के निर्णय को चुनौती दी गई है और न काम शुरू हो सका है। 

टीजे मोटर मार्ग के दूसरे पैकेज चूका से रूपालीगार पर फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर निविदा हासिल करने का आरोप लगा था। लोहाघाट के विधायक पूरन सिंह फर्त्याल द्वारा मामले को उठाने के बाद शासन की उच्च स्तरीय जांच में 2018 में आरोपों की पुष्टि हुई। साथ ही अगस्त में निविदा को निरस्त करने के साथ री-टेंडरिंग पर रोक लगा दी गई थी। सितंबर 2019 में री-टेंडरिंग पर लगी रोक हटी। और ठेकेदार पर लगे आरोप भी अदालत ने इस साल मार्च में खारिज कर दिए। जबकि दो जून को आर्बिटेशन ने मुआवजा देने का आदेश दिया था। वहीं री-टेंडरिंग में हीलाहवाली के चलते सात जुलाई को दो अधीक्षण अभियंताओं को भी निलंबित किया गया। 

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नेपाल सीमा को विभाजित करने वाली काली नदी के समानांतर बनने वाली इस टीजे रोड का असल मकसद भी सुरक्षा चौकसी को पुख्ता करने और एसएसबी की बीओपी (बार्डर आउटपोस्ट) तक आधारभूत ढांचे को बेहतर करना था। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित बीओपी तक पहुंच को सुगम बनाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 135 किमी के टीजे मार्ग को मंजूरी दी थी।

आपको बता दे की लिपुलेख, कालापानी व लिंपियाधुरा के सीमा विवाद व अन्‍य मसलों पर नेपाल और भारत के बीच विवाद खड़ा हो गया है। नेपाल ने तनाव को बढ़ाते हुए भारत के कुछ हिस्सों को आपने यहाँ बताकर अपनी संसद से एक नया नक्शा भी पास करवा लिया है। टनकपुर से लगी सीमा पर विवादित नोमैंस लैंड पर कब्जे से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ेगा।

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