हल्द्वानी: उत्तराखण्ड के सरकारी मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस कोर्स के छात्र और उनके पेरेंट्स काफी परेशान है। उनकी परेशानी की वजह है एमबीबीएस कोर्स की बढ़ी हुई फीस। कोरोना महामारी और लॉकडाउन की परेशानी के बीच में उत्तराखण्ड के एमबीबीएस कोर्सेज के छात्रों के लिए फीस बढ़ोत्तरी ने मुसीबतें बढ़ा दी है। सरकारी मेडिकल कॉलेज ने एक साथ ही एमबीबीएस कोर्स की फीस आठ गुना तक बढ़ा दी है।
छात्रों को इस महीने के अंत तक लगभग 4 लाख 30 हजार रूपये की अपनी सालाना फीस भरनी है, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे इस फीस को कैसे भरेगें। पहले से ही एमबीबीएस की फीस ज्यादा थी और अब आठ गुना फीस देना छात्रों के बस की बात नहीं है। गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले कई ऐसे छात्र-छात्राएं हैं जिन्होंने इसके लिए कुछ साल ड्रॉप कर तैयारी की है। दो साल तैयारी करके ऑल इंडिया मेडिकल प्रवेश परीक्षा (नीट) पास की है।
उन्होंने कड़ी मेहनत करके सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया ताकि फीस देने में कोई परेशानी ना आए। पर उत्तराखण्ड सरकार के इस फैसले से कमल गहतोड़ी जैसे कई गरीब छात्रों के डॉक्टर बानने के सपने पर पानी फिरता नज़र आ रहा है। कई छात्रों ने बताया कि उन्हें बैंक से लोन लेने में भी दिक्कत आ रही है। एक तो बैंक लोन देने के लिए कोई जमीन या संपत्ति गिरवी के तौर पर रखने की बात कर रहा है, ऊपर से ग्रामीण छात्रों को 7.5 लाख रूपये से अधिक का लोन मिल नहीं पा रहा है, जबकि उन्हें 4.5 साल की फीस के लिए 20 लाख रूपये से ऊपर की जरूरत है।
इस मुद्दे पर प्रदेश की यूथ कांग्रेस इकाई ने छात्रों की इस मांग का समर्थन किया है और कहा है कि कांग्रेस काफी समय से मेडिकल छात्रों की मांग को सरकार के सामने उठा रही है, लेकिन सरकार सुनने को तैयार नहीं हैं। विद्यार्थियों ने इसके खिलाफ सोशल मीडिया पर मोर्चा खोल दिया है और लगातार ट्विट वायरल हो रहे हैं। अब सरकार को तय करना है कि क्या पढ़ाई केवल पैसे वालों के लिए रह गई है या फिर वो वर्ग भी शामिल है जिसे पढ़ने के लिए दो वक्त की रोशनी नहीं मिलती है।
आपकों बता दे की उत्तराखण्ड सरकार में स्वास्थ्य शिक्षा विभाग के मंत्री खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हैं। छात्र सोशल मीडिया पर लगातार इस आदेश का विरोध कर रहे है और और सरकार से तत्काल प्रभाव से आदेश वापस लेने को बोल रहे है। विद्यार्थियों ने कहा कि फीस बढ़ रही है तो केवल उतनी ही बढ़ी जितनी एक गरीब परिवार बिना तनाव के भर सकता है।