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उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, क्यों देवभूमि में मनाया जाता है फूलदेई ( phooldei) पर्व !


Uttarakhand: Festivals: phooldei: फूलदेई पर्व: उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर

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चैत्र संक्रांति पर मनाया जाने वाला पर्व

फूलदेई पर्व का उत्तराखंड में विशेष महत्व है। यह त्योहार चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास ही नववर्ष का पहला महीना होता है। इस पर्व को विशेष रूप से बच्चे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। वे घर-घर जाकर देहरी पर फूल बिखेरते हैं और पारंपरिक लोकगीत गाकर वातावरण को आनंदमय बना देते हैं।

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पौराणिक कथा से जुड़ा पर्व

फूलदेई पर्व के पीछे एक प्राचीन कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि बहुत समय पहले पहाड़ी क्षेत्रों में घोघाजीत नामक राजा राज्य करता था। उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम घोघा था। घोघा प्रकृति प्रेमी थी और फूलों से विशेष लगाव रखती थी। एक दिन वह अचानक लापता हो गई। उसकी अनुपस्थिति से राजा अत्यंत दुखी रहने लगे।

राजा की कुलदेवी ने उन्हें सुझाव दिया कि वे वसंत ऋतु में चैत्र मास की अष्टमी तिथि पर गांव के सभी बच्चों को बुलाएं और उनसे घरों की देहरी पर फ्योंली और बुरांस के फूल अर्पित करवाएं। कुलदेवी के अनुसार, ऐसा करने से घरों में सुख-समृद्धि आएगी। तब से यह परंपरा शुरू हुई और फूलदेई पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा।

अनेक दिनों तक चलने वाला उत्सव

उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में फूलदेई पर्व चैत्र संक्रांति से ही प्रारंभ हो जाता है। कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में यह पर्व आठ दिनों तक मनाया जाता है, जबकि कुछ स्थानों पर पूरा चैत्र मास इस उत्सव को समर्पित रहता है।

संस्कृति और परंपराओं से जुड़ने का अवसर

फूलदेई पर्व लोगों को आपसी भाईचारे, प्रकृति प्रेम और परंपराओं से जोड़ने का महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। बच्चे प्रसन्नतापूर्वक इस पर्व में भाग लेते हैं, जिससे न केवल उनका मन आनंदित होता है बल्कि बड़ों को भी अत्यधिक संतोष की अनुभूति होती है। लोकगीतों, धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़े इस पर्व से समाज को अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा मिलती है।

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