
अल्मोड़ा: उत्तराखंड की शांत और पहाड़ी वादियों से निकलकर अल्मोड़ा जिले के छोटे से गांव दुगड़ाकोट के बेटे महेंद्र कुमार आर्य ने वो कर दिखाया है, जिसकी कल्पना अक्सर बड़े शहरों में रहने वाले ही करते हैं। अब वे अंटार्कटिका जैसे बर्फीले और अत्यंत चुनौतीपूर्ण महाद्वीप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
महेंद्र वर्तमान में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक पद पर कार्यरत हैं। इसके साथ ही उन्हें भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे अंटार्कटिका वैज्ञानिक अभियान में भी शामिल किया गया है। यह वही अभियान है…जिसके अंतर्गत भारत 1981 से दुनिया के सबसे ठंडे महाद्वीप में शोध कार्य कर रहा है।
महेंद्र का जीवन संघर्षों और प्रेरणाओं से भरा रहा है। एक साधारण ग्रामीण परिवार में जन्मे महेंद्र के पिता दौलत राम ने खेतों में मेहनत कर अपने छह बच्चों को पढ़ाया-लिखाया। परिवार की सीमित आय और संसाधनों के बीच भी शिक्षा का दीप जलता रहा। इस सफर में उनके कनाडा में बसे बड़े भाई ने भी अहम भूमिका निभाई। इन्हीं मजबूत नींवों और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर महेंद्र आज उस मुकाम पर पहुंचे हैं…जहां से वे भारत के लिए विज्ञान की नई इबारत लिखने जा रहे हैं।
महेंद्र कुमार आर्य ने बताया कि वह 23 अक्टूबर को अंटार्कटिका के लिए रवाना होंगे और वहां मैत्री और भारती नामक भारतीय स्थायी अनुसंधान केंद्रों पर हिम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन से जुड़े शोध कार्यों में भाग लेंगे। यह अभियान 28 फरवरी 2026 तक चलेगा। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मुझे इस अभियान में शामिल होने का अवसर मिला है। मैं पूरे समर्पण से अपने शोध कार्यों को पूरा करूंगा।
महेंद्र की यह यात्रा न सिर्फ उनके लिए गर्व का विषय है…बल्कि उनके गांव, जिले और पूरे उत्तराखंड के लिए भी एक प्रेरणा है






