हल्द्वानी: युवा पीढ़ी नशे की ओर काफी तेजी से आगे बढ़ रही है, जो भविष्य की ओर खतरे की घंटी बजा रहा है। नशे के दुष्परिणाम कई बार सामने आते हैं लेकिन युवा इससे अनजान है। डॉक्टर नेहा शर्मा( क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट) का कहना है कि आजकल नशाखोरी के घटनाक्रम के आकलन की समस्या अधिक तेजी से बढ़ती जा रही है क्योंकि इसके प्रचलन में युवा पीढ़ी को कम उम्र के स्कूली बच्चे तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।
डॉक्टर नेहा शर्मा ओपीडी में बच्चों को देखकर अपना आकलन कर रही है। उनका कहना है कि आज की युवा पीढ़ी नशे के जाल में इस तरह पकड़ी जा रही है कि जहां से निकल पाना बहुत ही मुश्किल नजर आ रहा है । इसमें सबसे पहले नशा शराब,चरस, इंजेक्शन, कैप्सूल और इनहेलर का देखने को मिलता है।
डॉक्टर नेहा शर्मा का मानना है कि नशे के सेवन से बच्चों के शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार के परिवर्तन होते हैं पर मानसिक परिवर्तन ज्यादा होते हैं जो कि व्यवहार समस्याओं में देखने को मिलते हैं। नशे के उपयोग का मुख्य कारण विचार मन से आता है और विचार वुद्धि पर निर्भर करता है। यानी बच्चों में आइक्यू का कम या ज्यादा होना समझ को दर्शाता है।किसी भी सही व गलत चीजों का सेवन करना बच्चों की बुद्धि पर निर्भर करता है।
डॉक्टर नेहा शर्मा ने बताया कि आजकल वह रोज 4 से 5 बच्चों को देख रही हैं जो कि 13 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के स्कूली छात्र हैं। वह नशे के कारण जन्में व्यवहार समस्या को लेकर परामर्श के लिए आ रहे हैं। डॉ नेहा ने नशे की गिरफ्त में छात्रों का मनोवैज्ञानिक उपचार कर उन पर केस स्टडी और रिसर्च कर देखा कि कम उम्र में जो बच्चे नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं उनका मुख्य कारण उन बच्चों की आई क्यू औसत से कम होना पाया है। डॉ शर्मा कहती है कि आज समाज में किशोरों को नशे से रोकने के लिए उनके कारण को समझना होगा। वह बच्चों के IQ का मूल्यांकन कर नशे की प्रगति को कम किया जा सकता है। नशे का सेवन युवा मनोरंजन के लिए करते है। इसके बाद वो काल्पनिक दुनिया में चले जाते है। इसका इस्तेमाल उनकी बुद्धि पर निर्भर करता है।
इस तरह से होता है IQ का आलंकन
डॉक्टर नेहा शर्मा ने बताया कि मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक द्वारा बच्चों के मेंटल स्टेटस एग्जामिनेशन के बाद कुछ आइक्यू टेस्ट किए जाते हैं जिसके लगभग 40 से 60 मिनट लगता है। बच्चों की बौद्धिक क्षमता के अलग अलग पहलुओ जैसे-ज्ञान, शब्द ज्ञान, तर्क करने की क्षमता और यादाशत को देखते हुए स्कोर दिया जाता है। डॉक्टर शर्मा ने कहा कि आज दौर में बच्चों का आईक्यू टेस्ट होना जरूरी है। इससे से बच्चे के व्यवहार का मूल्यांकन हो सकता है।
बढ़ाया जा सकता है आईक्यू और बदली जा सकती है नशे की ओर सोच
डॉक्टर नेहा शर्मा का कहना है कि बच्चों की बौद्धिक क्षमता बहुत सी बातों पर निर्भर करती है। जिसमें स्कूल का वातावरण आसपास का वातावरण भावनात्मक सहयोग द्वारा मनोवैज्ञानिक विधियों से 30 से 70% तक बुद्धि को बढ़ाया जा सकता है। डॉक्टर शर्मा ने आपनी स्टडी कर छात्रों में नशे के कारण में बुद्धि का कम होना देखा है व स्टडी में पाया कि बच्चों में नशा एक आदत बन गया है जिससे बच्चों को बार-बार व्यवहार में समस्या, चिड़चिड़ापन, मन ना लगना जैसे अनेक मानसिक विकारों के शिकार होना पड़ रहा है।
डॉक्टर नेहा शर्मा का मानना है कि आजकल बच्चों में नशे की प्रवृत्ति के बढ़ने से रोकने के लिए नशे को बंद करने जैसे मजबूत कदम उठाने होंगे। बच्चों की मानसिकता जो कि नशे का मुख्य कारण है उसका स्वतंत्र रूप से मनोवैज्ञानिक उपचार करना चाहिए न से ना तो किसी के दबाव से किया जाता है ना ही किसी के दबाव से छोड़ा जाता है।
इसके लिए बच्चों को नशे से दूर करने के लिए मन में विचारों को सही कर किया जाना जरूरी है। अगर आपके बच्चे के व्यवहार में आपको बदलवा दिखता है जैसी की व्यवहार में समस्या, चिड़चिड़ापन और मन ना लगना तो तुंरत आईक्यू टेस्ट कराएं जिससे आप अपने बच्चे को नशे की चपेट से बचा सकें।