नैनीताल: छोटे से गांव से निकलकर प्रतिभाशाली युवा विदेशों तक पहुंच रहे हैं। खैरना के विकास कत्यूरा ने अपने टैलेंट के बलबूते फ्रांस तक उत्तराखंड का नाम रौशन किया है। दरअसल फिल्ममेकर (लाइन प्रोड्यूसर) विकास की 90 मिनट की शॉर्ट फिल्म चिल्ड्रंस ऑफ गॉड को फ्रांस में होने वाले विश्व प्रसिद्ध कान फेस्टिवल में दिखाई जाएगी।
विकास कत्यूरा नैनीताल के पास स्थित खैरना गांव के रहने वाले हैं। फिल्ममेकर बनने के अपने सपने को पूरा करने के साथ विकास ने सामाजिक मुद्दों को उठाने का भी जिम्मा उठाया है। उन्होंने हाल ही में 90 मिनट की शॉर्ट फिल्म तैयार की है। शॉर्ट फिल्म चिल्ड्रंस ऑफ गॉड में एक व्यक्ति के जीवन में पेश आ रही दिक्कतों व उसके प्रति समाज के भेदभाव को दर्शाया गया है।
खास बात ये है कि विकास कत्यूरा ने इस फिल्म की पूरी शूटिंग खैरना व गरमपानी इलाके में ही की है। साथ ही स्थानीय कलाकारों को ही इसमें अभिनय का मौका दिया गया है। नैनीताल जिले के साथ साथ पूरे उत्तराखंड के लिए ये बड़ी बात है कि विकास की इस शॉर्ट फिल्म को फ्रांस के कान फेस्टिवल में एंट्री मिल गई है।
विकास ने इस बात की पुष्टि की है। बता दें कि बेहद ही संवेदनशील मुद्दे को बाखूबी दर्शाती इस फिल्म का प्रदर्शन शॉर्ट फिल्म कैटेगरी में किया जाएगा। गौरतलब है कि विकास पहले भी पलायन जैसे अहम मुद्दे पर फिल्म बनाकर सुर्खियां बंटोर चुके हैं। उस फिल्म को भी करोड़ों लोगों ने देखा था। विकास का मानना है कि उत्तराखंड व कुमाऊं मंडल में सही मार्केटिंग फिल्मांकन के कई सारे दरवाजे खोल सकती है।
विकास कत्यूरा ना सिर्फ फिल्म बना रहे हैं बल्कि पहाड़ी दृश्यों को विदेशों तक पहुंचाने के साथ साथ स्थानीय कलाकारों को रोजगार के मौके दे रहे हैं। वह चाहते हैं कि इस गांव को पर्यटन के हिसाब से बढ़ावा मिलना चाहिए। गौरतलब है कि नैनीताल जिला बहुत ही खूबसूरत जगह होने के साथ साथ कई सारी युवा प्रतिभाओं का समावेश भी है।
फेस्टिवल के इतिहास पर नजर डालें तो इसकी शुरुआत 20 सितंबर 1946 में हुई थी। इस इवेंट में दुनियाभर की चुनिंदा फिल्मों, डॉक्यूमेंट्री को दिखाया जाता है। शुरुआत में फिल्म फेस्टिवल में 21 देशों की फिल्म को दिखाया गया था। बता दें कि भारत से पहली बार 1946 में चेतन आनंद की फिल्म “नीचा नगर” को सबसे सम्मानित Grand Prix award से नवाजा गया। अबतक1951 में फिल्म अवारा, 1953 में दो बीघा जमीन, 1954 में बूट पॉलिश, 1955 में पाथेर पांचाली, 1965 में गाइड, 1982 में आई खार जी, 1988 में सलाम बॉम्बे, 2010 में आई उड़ान, 2013 में इरफान की लंच बॉक्स को भी यहां सम्मानित किया जा चुका है।