Editorial

उत्तराखंड वासियों जरा याद करो कुर्बानी


हल्द्वानी-  उत्तराखंड में तीन दिन बाद वोटिंग है। तो सवाल ये है कि इस बार वोट किसको दें? हर बार की तरह मुकाबला इस बार भी दो पार्टियों के बीच ही है ,जिन्होंने बारी बारी से राज्य पर राज किया और अपने तरह से कुछ लोगों का विकास किया। इसमें सबका साथ सबका विकास और खुद को गरीबों, और गाड़ गधेरो का सीएम कहने वाले सीएम का शासन भी है।पर इस बार क्या आप लोग वोट फिर से बस सत्ता परिवर्तन या फिर भाई भतीजावाद में दे देंगे? ये राज्य के भविष्य का यक्ष प्रश्न है? सवाल बड़े है लेकिन विकल्प सीमित है। आज से 16 साल पहले जब नवंबर 2000 को उत्तराख़ड राज्य की स्थापना हुई तो सबको लगा था कि जो सपना यहां के लोंगो ने अपने लिए देखा था शायद वो पूरा हो जाएगा।जो बलिदान और संघर्ष यहां के लोगों ने किया वो अब फलीभूत हो चुका है।पर ये गलतफहमी थी पूरे राज्य के लोगों की। उत्तराखंड में तीन आम चुनाव हो चुके हैं। जिनमें से दो बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी को सत्ता हासिल हुई है। मतलब जनता ने दोंनो प्रमुख पार्टियों और उनके नेताओं को राज्य के विकास के लिए पूरा मौका दिया पर लगता नहीं कि किसी भी सरकार ने राज्य की बदहाली को सुधारने के गंभीरता से प्रयास किए। आज तक हमारे पास एक स्थाई राजधानी नहीं है। नेताओं ने मैदान को अपना स्थाई पता बना लिया है वो सैर सपाटे और फीता काटने ही पहाड़ में आते हैं। उत्तराखंड बनने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि पलायन रुकेगा। स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढेंगे, शिक्षा की जर्जर स्थिति मज़बूत होगी। लोंगो को पढने के लिए बाहर जाना नहीं पड़ेगा, स्वास्थ्य सेवाएं का विस्तार होगा पर आज राज्य में सरकारी हॉस्पिटलों की हालत बेहद खराब है। छोटी से छोटी बीमारी का ईलाज संभव नहीं हैं।पर्वतीय इलाके सड़कों से मरहूम हैं। पीढिया बीत गई पर गांव सड़को से नहीं जुड़े। इस कारण वो मुख्यधारा से बेहद पिछड़ गए हैं। अब बात रोज़गार की सरकारी नौकरी ईमानदारी से मिलना दूर की कौड़ी है। सरकारे जिसकी भी रही उसने अपने सगे संबंधियों और चेले चमाटों का भला किया। आज भी युवा आबादी रोजगार को तरस रही है। सिर्फ फौज के भरोसे यहां के लोग हैं।राज्य के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है। आय के कई स्त्रोत यहां हैं पर सब पर माफियाओं का राज है, पत्थर, रेत, पानी और ज़मीन की इस लूट को सरकारी संरक्षण प्राप्त है। सरकार कोड़ी के दाम पर इसके पट्टे सरकारे बांट रही हैं और राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है। शराब यहां की सबसे बड़ी सामाजिक बुराइयों में से एक है।पर शराबब़दी तो छोड़िए सरकार ने इसे आय का मुख्य धंधा बना दिया है। पूरे गांव के गांव शराब की दुकानों से भर दिए हैं। देशी शराब पिलाकर लोंगो के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। खुलेआम शराब की तस्करी पूरे राज्यों में है।पुलिस, आबकारी विभाग और नेताओं के गठजोड़ सेे सुनियोजित लूट हो रही है।पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। मुख्यमंत्री टैक्स शराब की दुकानों पर लग गया है । रात कारोबारी एमआरपी रेट से मंहगी शराब बेच रहे हैं। पर प्रशासन और सरकार दोनों खामोश हैं।हर कोई नेता अपने फायदे ढूंढ रहा हैं।जिस तबके को सबसे ज्यादा मदद की ज़रुरत है वो नारकीय जीवन का अभिशाप झेल रहा है।पर सबसे बड़ा वोट बैंक भी वो ही है। पूरे चुनाव में गुलाबी पर्चियां बांटकर लोगों को शराब पिलाई जा रही है। चंद रुपयों में वोट खरीदे जा रहे हैं। पर सवाल ये ही कि नेता इसकी कीमत कैसे वसूलेंगे और अगर आपने इन्हें जीताया तो ये अगले पांच साल तक कितना बड़ा लगान आपसे लेंगे।आप फिर पांच साल ठगे जाने वाले हैं इसलिए इस बार जिसे भी जिताइए याद रखिए कि वो राज्य के विकास के लिए क्या कर सकता है।आपकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति कैसे सुधार सकता है। आपका और आपके बच्चों का भविष्य कैसे बनाता है। आप
का काम सरकार बनाना नहीं बल्कि अपने क्षेत्र से अच्छे उम्मीदवार को विधायक बनाना है ये काम तो इन पार्टियों का है कि वो कैसे ईमानदारी के दम पर एक स्थिर सरकार देंगे या फिर खरीद फरोख्त कर इस कुर्सी तक पहुंचेगें।देवभूमि के हर नागरिक को इस चुनाव को खुद के लिए भी चुनौती के तौर पर लेना होगा ताकि अपने छोटे मोटे स्वार्थों को तिलांजलि देकर हम उत्तराखंड को देश का सर्वश्रेष्ठ सूबा बनाए।तो अब वक्त आपकी परीक्षा का है ये अब आप पर निर्भर है कि आप ईमानदारी से ये परीक्षा पास करें किया दूसरे अनैतिक तरीकों से टॉप समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया की ये बात ईवीएम पर बटन दबाते समय दिमाग में रखिएगा। ज़िंदा कौमें 5 साल इंतज़ार नहीं करती।

जय उत्तराखंड, जय भारत।

 

 

 

hemraj

हेमराज चौहान- टीवी पत्रकार

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नोट- लेख में लेखक के व्यक्तिग्त विचार है

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