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कोबरा पोस्ट का ‘ऑपरेशन 136’, निंदा और अालोचना के दलदल में फंसेगा पूरा मीडिया


नई दिल्ली: ऑनलाइन मैग्ज़ीन कोबरा पोस्ट डॉट कॉम के मीडिया सेंटरों पर किए खुलासे मे पूरे देश को हिला कर रख दिया है। लोकतंत्र के स्तंभ मीडिया पर पैसे लेकर खबरे चलाने का दावा किया जा रहा है। इस खबर के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर भी लोगों ने मीडिया को कोसना शुरू कर दिया है। दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित हो रही प्रेस कांफ्रेंस में कोबरा पोस्ट ने बताया कि कई मीडिया समूह पैसा लेकर ‘हिन्दुत्व’ के एजेंडे से सम्बंधित खबरें चलाने के लिए तैयार हैं। इसके अलाना अपने  स्टिंग ऑपरेशन में कोबरा पोस्ट ने दावा किया है कि ये मीडिया ग्रुप काला धन लेने के लिए भी तैयार हैं।

कोबरा पोस्ट के अनुसार, “एक वरिष्ठ पत्रकार की तहकीकत के दौरान सामने आया है कि मीडिया कंपिनयों के बड़े पदों में बैठे लोग मोटी रकम के बदले  खुल्लमखुल्ला साम्प्रदायिक मीडिया कैम्पेन था, चलाने और सफल बनाने के लिए सैकड़ों रास्ते बना रहे है। केवल पैसों के लिए देश के माहौल को खराब करने की कोशिश की जा रही है।

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कोबरा पोस्ट के अनुसार कहता है कि हिदुत्व के मुद्दे पर पैसों के माध्यम से प्रोमोशन किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर वीडियो जारी करते हुए कोबरा पोस्ट ने दिखाया है कि हिदुत्व के मुद्दे पर  विनय कटियार, उमा भारती और मोहन भागवत की छवि को लोगों के सामने पेश किया जा रहा है। वही चुनाव से पहले विरोधियों के खिलाफ नकारात्मक पोस्ट चलाए जा रहे है।  मीडिया प्रतिष्ठानों को ये कैम्पेन अपने तमाम प्लेटफार्म जैसे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो और डिजिटल जिसमें ई न्यूज़ पोर्टल, ई पेपर, वेबसाइट, फ़ेसबूक, ट्विटर जैसे सोश्ल मीडिया पर चलाना है।”

दुनिया में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान 136 वां है। इसीलिए इस स्टिंग ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन 136 रखा गया है। कोबरा पोस्ट के अनुसार, “इस तहकीकत के बाद ये साफ हो गया है कि कैसे देश भर के मीडिया प्रतिष्ठान के ऊंचे पदों पर बैठे लोग पेड़ न्यूज़ को बढ़ावा देकर लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे है।”

कोबरा पोस्ट ने ये भी कहा है कि कुछ मीडिया संस्थानों के लोगों ने खुले तौर पर स्वीकार किया कि वो सरकार के कहे मुताबिक काम करते है और अपने व्यापारिक संबंधो की वजह से सरकार को नाराज़ करने का जोख़िम नहीं उठा सकते।खुलासे में ही आगे दावा किया गया है कि कुछ संस्थान एनडीए सरकार में बीजेपी की सहयोगी पार्टियों के बड़े नेताओं जैसे अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और उपेन्द्र कुशवाह के खिलाफ भी स्टोरी चलाने के लिए तैयार हुए। कुछ मीडिया संस्थान प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे, कामिनी जयसवाल और इंदिरा जय सिंह जैसे कानूनी जानकार और नागरिक समाज के बीच जाने-माने चेहरों को बदनाम करने के लिए भी सहमत दिखे। कुछ संस्थानों ने आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियो के तौर पर प्रस्तुत करने के लिए भी सहमति जताई।

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