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सफर-क्रिकेट प्रेम से क्रिकेट बोर्ड की कुर्सी तक


हल्द्वानी- अगर आपको भारतीय क्रिकेट में बतौर अधिकारी राज करना है तो आपका रुतबा अलग होना चाहिए। बीसीसीआई में एन्ट्री के लिए कई पूर्व खिलाड़ी कोशिश करते है लेकिन कुछ ही ऐसे होते है जिन्हें बीसीसीआई की टीम में शामिल होना का मौका मिलता है। लेकिन अनुराग ठाकुर की कहानी कुछ अलग है। एक मैच खेला वो भी बतौर कप्तान और बन गए बीसीसीआई के सबसे युवा अध्यक्ष। दुनिया के सबसे अमीर बोर्ड के अध्यक्ष के पास केवल एक मैच का अनुभव जो क्रिकेट कम राजनीति की बू ज्यादा देता है।अनुराग ठाकुर के क्रिकेट करियर से पहले उनके राजनीतिक करियर पर नजर डालना जरूरी है जो ताकत की पूरी कहानी बया करेगा।

आपकों बता दे कि अनुराग ठाकुर के पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के बेटे है।अनुराग को राजनीति विरासत में मिली थी और  2008 में वो हमीरपुर की बीजेपी सीट से 14 वें लोकसभा चुनाव में उनकी फतह ने ये साबित कर दिया कि ये नौजवां एक नया मुकाम हासिल करेगा। और हुआ भी कुछ ऐसा ही अनुराग  2009 और 2014 में वे पुन: लोकसभा के लिए हमीरपुर सीट से चुने गए।

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2014  में संपन्न हुए 16 वें लोकसभा चुनाव में अनुराग की जीत ने उन्हें भाजपा का एक युवा चेहरा बना दिया। पार्टी ने अनुराग को ऑल इंडिया भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया। इस पद को संभालते हुए उन्होंने कलकत्ता से श्रीनगर तक की निकली राष्ट्रीय एकता यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न कर अपने परिवार से मिली राजनीतिक विरासत के गुणों की झलक भारत की जनता को दी। उन्होंने इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य श्रीनगर स्थित लाल चोक पर तिरंगा फहराकर पूरा किया।

अनुराग के युवा जोश का पूरा हिमाचल कायल है और उनके खेल के प्रति प्यार ने प्रदेश को एक नई पहचान  भी दी है।अनुराग को हिमाचल की जनता विकास पुरुष के तौर पर भी देखती है। अनुराग के परिश्रम के कारण ही हिमाचल प्रदेश क्रिकेट की दुनिया में एक खूबसूरत चेहरे की तरह सामने आया। धर्मशाला में बने इंटरनेशनल स्टेडियम का क्रेडिट अनुराग को जाता है। हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहते हुए अनुराग ने यह डेब्यू किया था।इस मैच ने ही इनुराग की बीसीसीआई में जाने के दरवाजे खोले। वह बीसीसीआई के सेक्ट्रेरी पद के लिए चुनाव लड़े, जिसमें वे विजयी भी रहे। मई 2016 को बीसीसीआई के अध्यक्ष के लिए हुए चुनाव में भी वे सफलतापूर्वक अपने पुराने हिस्टरी को दोहराने में सफल रहे। इस तरह वे बीसीसीआई अध्यक्ष पद के तौर पर दूसरे सबसे युवा अध्यक्ष बने। लेकिन अपने जिद्दी रवैये के कारण अनुराग 7 महीने में ही बीसीसीआई की कुर्सी से हाथ धो बैठे।अनुराग को समझना चाहिए था की क्रिकेट और राजनीति दोनों अलग है। क्रिकेट में राजीतिक करने का क्या नतीजा होता है वो अनुराग और देश को सुप्रीम कोर्ट ने इनकी छुट्टी करके बता दिया।

अनुराग पर आए फैसले से साफ है कि लोढ़ा कमेटी क्रिकेट को साफ बनाने की तरफ जो कदम उठा रही थी वो उससे कॉमप्रोमाइस नही करेंगी। कोर्ट के फैसले से साफ है कि क्रिकेट में राजनीति बिल्कुल नही चलेगी और अगर कोई ये करता है तो उसका हाल भी युवा अनुराग ठाकुर जैसा  होगा।

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