नई दिल्ली:कालोनियों में लगे मोबाइल टावर को लेकर अक्सर विवाद होता है। कभी लोग तो कभी विशेषज्ञ टावरों से निकलने वाली खतरनाक रेडिएशन के बारे में आवाज उटाते है। रेडिएशन लोगों के सेहत के लिए कितनी हानिकारक है ये बात रिसर्च में सामने आ चुकी है। सुप्रीम कोर्ट एक याचिका में ऐसा फैसला सुनाया है जो पहले देश में कभी नहीं हुआ। ये फैसला काफी हद तक टेलीकॉम के लिए एक चेतावनी भी है। किसी जगह पर लगाने से पहले दूरसंचार कंपनिया हज़ार बार सोचें।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में हरीश नाम के एक व्यक्ति ने याचिका दाखिल कर ये अपील की थी कि जिस मोबाइल फोन टावर के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से उन्हें कैंसर हुआ है उसे वहां से हटा दिया जाए। देश में पहली बार हुआ है कि कोर्ट ने टावर हटाने को कहा है। निजी अखबार के अनुसार कोर्ट को इस बात पर राजी कर लिया कि इसी मोबाइल फोन के टावर के कारण उसे कैंसर हुआ है
जाने पूरा मामला
ग्वालियर निवासी हरीश चंद तिवारी के दल बाजार इलाके में प्रकाश शर्मा नाम के व्यक्ति के घर पर काम करते हैं। हरीश का आरोप है कि साल 2002 से पड़ोसी के छत पर अवैध रूप से लगाया गया बीएसएनएल का मोबाइल फोन टावर उन्हें 14 साल से हानिकारक रेडिएशन का शिकार बना रहा है, जिस कारण उन्हें कैंसर हुआ है। हरीश ने पिछले साल इसे हटाने को लेकर शिकायत की थी।
कोर्ट के फैसले से बदला इतिहास
हरीश के अनुसार वो जहां काम करता था वहां से टावर मात्र 50 मीटर की दूरी पर है। हरीश की अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बीएसएनएल के इस टावर को सात दिन के अंदर बंद करने के आदेश दिेए हैं। भारत में ये पहला मौका है जब कोर्ट के आदेश के बाद ऐसे मामले में कोई मोबाइल टावर हटा दिया जाएगा। दूरसंचार मंत्रालय ने पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर बताया था कि इस समय देश में 12 लाख से अधिक मोबाइल फोन टावर हैं। जिनमें से मात्र 212 टावरों में रेडिएशन तय सीमा से अधिक पाया गया। जिसके बाद कोर्ट ने सभी टावरों पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।