हल्द्वानी : विधानसभा चुनाव में उतरी भाजपा मोदी के नाम पर तो दम दिखा रही है, लेकिन मतदाताओं को रिझाने के लिए विकास के मजबूत रिपोर्ट कार्ड की कमी पूरी खल रही है। हालांकि भाजपा के रणनीतिकार मेयर को सीधा, ईमानदार, सरल स्वभाव और योग्य प्रतिनिधि जैसे स्लोगन देकर मतदाताओं को समझाने का प्रयास कर रहे हैं, पर इस समीकरण में वे कितना सफल हो पाते हैं। यह तो रिजल्ट ही बता पाएगा।
वीआईपी सीट रही हल्द्वानी में एक बार फिर भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने हैं। एक बार कांग्रेस जीतती है तो दूसरी बार भाजपा…। राजनीतिक सौभाग्य से दोनों ही अपनी-अपनी पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते थे। कांग्रेस की डॉ.इंदिरा हृदयेश वर्तमान में वित्त, संसदीय मंत्री हैं भी, मगर इस बार राजनीतिक परिदृश्य कुछ बदला हुआ है। डॉ.हृदयेश के पुराने राजनीतिक प्रतिद्धंदी बंशीधर भगत यहां से पलायन करके कालाढूंगी विस क्षेत्र में जा चुके हैं। अब यहां इस बार भाजपा ने नगर निगम के मेयर डॉ.जोगेंद्र रौतेला को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा की कोशिश तो यही थी कि मेयर होने के नाते डॉ.रौतेला कांग्रेस की दिग्गज नेता डॉ.हृदयेश को कड़ी टक्कर दे सकेंगे, बाकी मोदी के नाम के सहारे नैया पार कर लेंगे। लेकिन अब यह समीकरण कुछ गड़बड़ाता दिख रहा है। दिक्कत ये आ रही है कि कांग्रेस प्रत्याशी हल्द्वानी में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम की स्थापना, जू-सफारी और अंतरराज्जीय बस अड्डे की स्थापना का काम गिना रही हैं तो दमुवाढूंगा को आरक्षित वन क्षेत्र से मुक्त कराने जैसे फैसले स्थानीय जनता को प्रभावित कर रहे हैं। चमचमाती सडक़ें भी कांग्रेस के प्रचार को गति दे रहे हैं। ऐसे में संकट यह आ रहा है कि भाजपा लोकल मुद्दों में क्या गिनाये…।
डॉ.रौतेला नगर निगम के मेयर तो रहे, लेकिन शहर वालों के लिए बड़ी उपलब्धि के नाम पर उनका रिपोर्ट कार्ड बहुत हल्का है। दूसरा नगर निगम कर्मियों का वेतन संकट को लेकर चल रहे कार्य बहिष्कार ने टेंशन अलग से दे दी। पूरा शहर चार दिन तक गंदगी से बजबजाता रहा, इसने भी भाजपा की टेंशन बढ़ा दी। क्योंकि भाजपा के प्रत्याशी मेयर साहब भी तो हैं…। कांग्रेसी इस बात को अच्छी तरह से समझा रहे हैं कि जो मेयर साफ-सफाई नहीं करा सकते, निगम कर्मियों के वेतन का संकट हल नहीं करा सकते वे विधानसभा क्षेत्र के विकास की जिम्मेदारी भला क्या निभा पाएंगे…। हालांकि भाजपा पलटवार में केवल मेयर की स्वच्छ, ईमानदार छवि को पेश कर रही है, मगर मतदाताओं का इस पर मौन रेस्पांस पार्टी की चिंता भी खासी बड़ा रहा है। ऐसे में बस अब पार्टी के सामने मोदी के नाम का ही जाप बचा है। दूसरा दांव स्टार प्रचारकों को जुटाकर भाजपा का बेड़ा पार करने की कोशिश पर मंथन तेज हो गया है।
अनुज सक्सेना, वरिष्ठ पत्रकार