हल्द्वानी: हिंदुस्तान में सिनेमा का एक अलग ही पागलपन है। सिनेमा हॉल में जा कर फिल्में देखना, लोगों को खासा रास आता है। ऐसा माना जाता है कि सिनेमा कहीं ना कहीं हमारे भावों पर और दिल ओ दिमाग पर भी जोर डालता है। भारी संख्या में लोगों का सिनेमा के प्रति प्यार ही एक कारण है कि सभी फिल्में सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्टर हो कर पब्लिक में पहुंचती है। फिल्में अभद्र ना हो, फिल्मों में गलत सीन ना हों, इसकी सारी ज़िम्मेदारी सेंसर बोर्ड की होती है।
पिछले दो सालों में भारत के अंदर सिनेमा के अलावा ओटीटी प्लेटफॉर्म ने भी दर्शकों के दिल में काफी जगह बना ली है। यहां किसी भी तरह का कोई फिल्टर या कोई सेंसर बोर्ड नहीं है, जिसके कारण लोग ओटीटी की तरफ ज़्यादा आकर्षित होते हैं। फिल्म निर्माता भी वो फिल्में यहां ले कर आते हैं जो वे सेंसर बोर्ड से बचाना चाहते हैं। जिसके कारण ओटीटी पर फिल्में और वेब सीरीज में सिनेमा के मुकाबले काफी अभद्र सीन और नग्नता देखने को मिलती है। मगर अब सारे ओटीटी प्लेटफॉर्म को भी सरकार अपने अंतर्गत ले रही है।
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अब नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, डिज्नी हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफार्म को सूचना व प्रसारण मंत्रालय अपने अंतर्गत ले कर, इन पर दिखाई जाने वाली हिंसा और नग्नता पर लगाम लगाना चाहता है। दरअसल, डिजिटल मीडिया पर किसी भी तरह का काबू पाने के लिए अब तक कोई भी संस्था नहीं थी। जिसके कारण ओटीटी पर काफी हिंसा, गलत सीन, सब कुछ परोसा जा रहा था। इसे लेकर कई बार हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता ज़ाहिर की थी।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ओटीटी प्लेटफार्म पर नियंत्रण की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार, सूचना व प्रसारण मंत्रालय और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया को नोटिस भेजा गया था। याचिका में कहा गया था कि इन ओटीटी प्लेटफार्म के माध्यम से फिल्म मेकर्स व कलाकारों को सेंसर बोर्ड से बच कर अपना किसी भी तरह का कंटेंट रिलीज करने का मौका मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि डिजिटल मीडिया पर काबू पाना टीवी से ज्यादा जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट से सब बातें सुनने के बाद अब सरकार ने यह कदम उठाया है।
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केंद्र के सूचना व प्रसारण मंत्रालय का मानना है कि जब प्रिंट के नियमों के लिए प्रेस काउंसिल है, न्यूज चैनलों के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, विज्ञापन के लिए एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया है तो सिनेमा पर दिखाई जाने वाली फिल्मों के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन है। तो डिजिटल माध्यम को भी नियंत्रित करने के लिए कोई स्वायत्त एजेंसी होनी चाहिए। जिसके चलते फिलहाल मंत्रालय ने सारा कार्यभार अपने अंदर ले लिए है।
बता दें कि ओटीटी प्लेटफार्म में द वायर, द प्रिंट और स्क्रॉल जैसी समाचार वाली वेबसाइट के अलावा हॉटस्टार, वूट, नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम वीडियो, सोनी लिव और जी5 जैसे मनोरंजन वाले ऐप भी आते हैं। सरकार का यह फैसला अच्छा हो या ना हो लेकिन फिल्म निर्माताओं और कलाकारों और दर्शकों के लिए यह ख़ास अच्छी खबर नहीं है। दर्शकों का मानना है कि कई बार सेंसर बोर्ड फिल्मों में इतने कट कर देता है जिससे पूरी फिल्म का रोमांच खत्म हो जाता है। दर्शकों को डर है कि कहीं यही अब ओटीटी के साथ ना हो।
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