देहरादून:लोकसभा चुनावी माहौल की गर्मी में पूरा देश तप रहा है।11अप्रैल तो सबसे पहला चरण उत्तराखंड में होने के कारण यहाँ चुनाव की सबसे अधिक गर्मी होना लाज़मी लगता है ,यूँ तो सभी प्रमुख पार्टियों के स्टार प्रचारक यहां चुनावी चिंगारी फूंक चुके हैं ,फिर भी यहां सर्द जैसे जाने का नाम ही नहीं ले रही है।चुनाव 11अप्रैल को है यानी चुनावी हलचल सिर्फ 48घंटो की ही मेहमान है।आमचुनाव का आगाज हर किसी के ख्याल में शानदार होना चाहिए था।पर इस बार उत्तराखंड में चुनावी शोर चरम पर नहीं पहुंच पाया है।पहाड़ की पगडंडियों से लेकर शहरी मैदानी क्षेत्रों में तक प्रत्याशियों और दलों की प्रचार व्यवस्था बेहद सुस्त दिखाई पड़ रही है। निर्वाचन आयोग के जरिए 11 अप्रैल को वोट जरूर दो ,आदि के जागरूकता से जुड़े पोस्टर और होर्डिंग तो खूब देखने मिली हैं,लेकिन पार्टियों ने जाने प्रचार कमान इतनी ढीली क्यों छोड़ दी है।
आमतौर पर चुनाव प्रचार के दौरान एक तरह का मेला लग जाता है ,लेकन 2019 के आम चुनाव बेहद खामोशी से प्रचार के लिए जाने जाएंगे ।उत्तराखंड के छोटे कस्बों ,गांवों से लेकर शहरों तक में होर्डिंग ,कटआउट ,पोस्टर और वॉल राइटिंग बहुत सीमित नजर आ रही है। यहीं नहीं छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं ,डोर टू डोर कैम्पेन भी इस बार जोर नही पकड़ पाया।हां चुनावी रैलीयों की धूम काफी रही जहां कुछ जगह पर आयोजित स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी ,अमित शाह ,राहुल गांधी और मायावती की रैलियों के अलावा कहीं भी लोगों में चुनावी जोश नहीं दिखा ।और यही इस बार चुनाव की चिंता बढ़ा रहा है। यहां तक की 11अप्रैल को होने वाले चुनाव को लेकर निर्वाचन मशीनरी के अधिकारी भी इस चुनाव को हल्के में लेने लगे हैं।
गौर करने वाली बात तो यह है कि राज्य में वैसे भी मतदान प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से कम होता है ।ऐसे में इस बार 11 अप्रैल को होने वाले चुनाव के मत प्रतिशत पर आयोग के साथ ही जानकारों की नजरें लगी हैं।अफसरों की चिंता इस खामोशी का असर मत प्रतिशत पर पड़ने के रूप में होने लगी है। ऐसे में आयोग ने बीएलओ से अधिक मतदान के लिए जमकर प्रचार अभियान छेड़ दिया है। उत्तराखंड के पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त सुवर्धन शाह ने इस पर कहा कि”अब देश की जनता लोकतांत्रिक प्रणाली को लेकर जागरूक हो गयी है और डिजिटल माध्यम आजाने से प्रचार का काम भी बंट गया है”। उनका मानना है’ कि इस बार उत्तराखंड में चुनाव लड़ रहे दल ,और प्रत्याशी वैसे भी लोगों के लिए नये नहीं हैं।इसलिए चुनाव प्रचार की ना ही वैसी महत्वतता है और ना ही वैसा शोर है।
कम प्रचार से इस बार मत प्रभावित होगा ,यह कहना मुश्किल है’। कहीं ना कहीं इस बार लोग चुनाव को राज्य के स्तर में नहीं देखकर राष्ट्र स्तर पर देख रहें हैं। उत्तराखंड में पिछली बार 74 के मुकाबले इस बार प्रत्याशी भी 52 तक सिमट गये हैं।उत्तराखंड वैसे भी कम मतदान वाला क्षेत्र रहा है ।ऐसे में चुनाव के प्रति घटता उत्साह, 11 अप्रैल के लोकसभा चुनाव के मत प्रतिशत में क्या असर डालता है ये बेहद बहुप्रतीक्षित विषय है।