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सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल है आत्महत्याओं का मुख्य कारण: मनोचिकित्सक नेहा शर्मा


हल्द्वानी: शहर में कुछ दिनों-महीनों से आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अत्याधिक तनाव और कम सहनशीलता ही युवाओं को खुदकुशी करने पर मजबूर कर रही है। प्रेम को मंजिल नहीं मिली या नौकरी चले गई, पिता से बहस हो गई या आगे बढ़ने के सब रास्ते बंद हो गए। कई कारणों में से यही कुछ मुख्य कारण हैं, जिसकी वजह सुसाइड के मामलों में अचानक से बढ़ोत्तरी हुई है।

कहते हैं सब दिमाग का खेल है। तो एक मनोवैज्ञानिक मनोचिकित्सक से बेहतर तो शायद ही कोई मानसिक रूप से जुड़े इन मामलों को समझ पाएगा। हल्द्वानी मनसा क्लिनिक की डॉ. नेहा शर्मा मनोचिकित्सक हैं। वह पिछले कई सालों से हल्द्वानी और आसपास के मानसिक तौर पर बीमार लोगों का उपचार कर रही हैं। डॉ. नेहा शर्मा ने खुदकुशी के बढ़ते मामलों और इसके समाधान के बारे में अपनी राय रखी है।

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मनोवैज्ञानिक मनोचिकित्सक नेहा शर्मा का कहना है कि लोगों में सहनशीलता की कमी और आसपास का नकारात्मक माहौल ही आत्महत्याओं को बढ़ावा दे रहा है। डॉ. नेहा शर्मा ने सोशल मीडिया को इन मामलों को बड़ा ज़िम्मेदार बताया है। उन्होंने सोशल मीडिया को आत्महत्याओं का 50 फीसदी जिम्मेदार बताया है।

मनोचिकित्सक नेहा शर्मा का कहना है कि लोगों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर पूरी जानकारी नहीं होना खराब बात है। मोबाइल एडिक्शन भी एक गलत चीज़ है। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया पर आने वाली तरह-तरह की खबरें, फोटो, वीडियो, विचार, सुझाव सहित कई भ्रामक खबरें खुदकुशी का कारण बन रही हैं।

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डॉ. नेहा शर्मा ने बताया मनुष्य के जीवन में करीब 6 महीने की उम्र से ही सुसाइड के ख्याल आने शुरू हो जाते हैं। नए दौर में इंसान की आकांक्षाएं भी बड़ी हैं। अपने लक्ष्य पूरे ना होने पर व्यक्ति नकारात्मक होने लगता है। ज़िंदगी की रेस में व्यक्ति को पीछे जाना भी काफी चुभता है। साथ ही युवा ही नहीं बल्कि सभी उम्र के व्यक्तिओं में नकारात्मकता देखी जा रही है। ऐसे में अपने विचारों को नियंत्रण में रखने की सख्त ज़रूरत है।

ऐसे में इसका समाधान साफ तौर पर यही है कि परिजनों को अपने बच्चों पर नज़र रखना सुरू करना होगा। डॉ. नेहा शर्मा ने कहा कि अपने बच्चों की गतिविधियों को पहचानना और उनसे बेहतर संपर्क बनाए रखने बहुत ज़रूरी है। अगर किसी को भी इस तरह का गलत ख्याल आए तो तुरंत अपने परिवार, दोस्तों से बात करें। समस्याओं को शेयर करें। व्यवहार परिवर्तन होने पर डॉक्टर से राय लें। जिससे की आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोका जाए।

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