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नैनीताल हाईकोर्ट ने निकायों को क्यों दी लास्ट वॉर्निंग, मंडल आयुक्तों को सौंपी बड़ी जिम्मेदारी


नैनीताल: उत्तराखंड में स्वच्छता का इंडेक्स जिस तरीके से गिर रहा है, वह चिंताजनक है। पर्वतीय जिलो में भी अब कूड़ा बढ़ने लगा है, जो राज्य की खूबसूरती पर एक धब्बा है। प्रदेश के शहरों के स्वच्छता रैंकिंग को बेहतर करने के लिए नैनीताल हाईकोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है। इस परेशानी का हल निकालने और नजर बनाए रखने के लिए कोर्ट द्वारा लोगों के लिए एक मेल आईडी बनाई जाएगी, जिसमें सॉलिड वेस्ट व कचरे की शिकायत दर्ज कर पाएंगे। ये शिकायत कुमाऊं व गढ़वाल कमिश्नर को भेजी जाएगी और निस्तारण 48 घंटे के भीतर कर उसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट में देंगे।

राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्णरूप से प्रतिबंध लगाने, जहां-तहां बिखरे प्लास्टिक कचरे का निस्तारण करने के मामले में अल्मोड़ा के हवालबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा कि राज्य में  प्लास्टिक को लेकर 2013 में बनी नियमावली का पालन नहीं हो रहा है। नियम के अनुसार उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे उतना ही खाली प्लास्टिक वापस ले जाएंगे। अगर नहीं ले जाते हैं तो इसके निस्तारण के लिए संबंधित निकाय को फंड देंगे। उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है। 

मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने पीआईएल पर सुनवाई की और जिलाधिकारियों की ओर से पेश शपथपत्रों पर सख्त नाराजगी भी व्यक्त की।  अदालत ने कहा कि प्लास्टिक और दूसरे कचरे के निस्तारण के लिए गंभीरता से काम नहीं हो रहा है।

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अदालत ने कहा कि कुमाऊं-गढ़वाल आयुक्त संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों के साथ गांव-गांव का दौरा करेंगे और इस परेशानी का हल खोजने के लिए निस्तारण के प्लान को लागू करेंगे।  शहरों में पड़े लीगेसी वेस्ट (पुराना कूड़ा) के निस्तारण के लिए कोर्ट ने संबंधित निकायों को अंतिम अवसर दिया है। इसके बाद कोर्ट संबंधित निकायों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। इस मामले में अब अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी।

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