हल्द्वानी: भारत ने 15 अगस्त को स्वंतत्रता दिवस का जश्न बनाया तो 16 अगस्त को उसकी राजनीति के एक स्वर्णीम युग खत्म हो गया। देश के रत्न अटल बिहारी वाजपयी लंबी बीमारी के बाद इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़कर जले गए। भारत ने अपने उस रत्न को खोया जो केवल प्रधानमंत्री नहीं बल्कि एक स्वच्छ भारतीय होने के कारण ज्यादा विख्यात रहा। वो एक कवि भी थे और पत्रकार भी। कविता ऐसी जिन्हें सुनने वाला उसकी ध्वनी व शब्दों में खो जाए। उन्हें अपने दल के लोग परिवार का मुख्या समझते थे तो वही विपक्ष भी उनका गुणगान करते नहीं थकता था।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आज दुनिया को अलविदा कह दिया, उनका गुरुवार दोपहर बाद एम्स में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह 93 साल के थे। वाजपेयी को यूरिन इन्फेक्शन और किडनी संबंधी परेशानी के चलते 11 जून को एम्स में भर्ती कराया गया था। मधुमेह के शिकार वाजपेयी का एक ही गुर्दा काम कर रहा था, लंबी लड़ाई के बाद आज वो जिंदगी की जंग हार गए और सदा के लिए उन्होंने दुनिया से विदाई ले ली। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था।
अटल जी का स्वभाव अपनी कविताओं की तरह मीठा हुआ करता था। ना उनकी कविताओं में नकारात्मक भाव नजर आता था ना ही उनके भाषणा में। उनकी कविताएं जिंदगी को बयां करती थी और भाषण देश की उन्नति के मार्ग पर ले जाने पर जोर देता था। उन्हें अपनी गद्दी का लोभ कभी नहीं रहा, वो अपने आप को एक सेवक मानते थे, जिन्हें देश ने प्रधान बनाया। उन्हें तो अपने देश को अमन के रास्ते पर ले जाना था। राजनीति के अपने सबसे बड़े हीरों को देश ने भारत रत्न से भी नवाजा। अटल जी को उनके जन्मदिन यानी 25 दिसंबर 2014 को भारत रत्न देने का एलान किया गया।
करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और प्रखर कवि और एक कुशल राजनेता अटल जी को भारत रत्न सम्मान देने के लिए प्रोटोकॉल तोड़कर राष्ट्रपति उनके घर पहुंचे थे और फिर उन्हें सम्मानित किया था। तत्कालिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनके आवास पर जाकर उन्हें देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दिया था। 27 मार्च 2015 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके आवास पर जाकर उन्हें ये सम्मान दिया था। ऐसा पहली बार हुआ था जब प्रोटोकॉल तोड़कर राष्ट्रपति किसी को भारत रत्न देने खुद उनके घर पहुंचे थे।