नई दिल्लीः देश में अमन कायम रहे इसके लिए भारत मां के एक लाल ने अपनी जान की आहूती दे दी। इस शहीद को आज पूरा देश सलाम कर रहा है। जम्मू-कश्मीर में बिगड़े हालात के बीच ये सेना का जवान नहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारी थे। जो आतंकियों की तरफ से हो रही गोलीबारी के बीच अपने साथ ऑपरेशन में कदम से कदम मिला रहे सेना के मेजर को बचाने के लिए कूद पड़े। अपने साथी मेजर को उन्होंने बचा भी लिया लेकिन अपनी जान का सर्वोच्च बलिदान इस देश के नाम कर गए। जी हां मैं बात कर रहा हूं अमन ठाकुर यानी शेर-ए-कश्मीर की। जम्मू-कश्मीर पुलिस का एक ऐसा डिप्टी एसपी, जिसे आतंकियों से लोहा लेने का जुनून था। इसी जुनून के चलते अमन पुलिस में शामिल हुए। पहले समाज कल्याण विभाग में नौकरी मिली। फिर सरकारी लेक्चरर बने। मगर अमन ठाकुर ने तो जैसे पुलिस में ही जाने की ठान ली थी।दो साल से उनकी पोस्टिंग कश्मीर में थी। और करीब-करीब हर आतंक विरोधी अभियान में वे शामिल होते थे। वे जम्मू कश्मीर पुलिस के आतंकियों के खिलाफ बनाए गए स्पेशल टास्क फोर्स में थे। उन्होंने साउथ कश्मीर के आतंक प्रभावित इलाके कुलगाम में कई आतंकियों को ढेर किया। 24 फरवरी को भी वे एक ऐसे अभियान पर थे, इसमें उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर 3 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। मुठभेड़ में अमन ठाकुर को भी गोलियां लगीं। आनन-फानन में उनको सेना के बेस अस्पताल ले जाया गया, पर उन्होंने दम तोड़ दिया।
जम्मू कश्मीर के कुलगाम में रविवार को आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) अमन ठाकुर को पुलिस बल में शामिल होने का जुनून इतना अधिक था कि वे दो सरकारी नौकरियां छोड़कर पुलिस में शामिल हुए थे। ठाकुर की उम्र करीब 40 साल थी। पहली नौकरी उन्हें समाज कल्याण विभाग में मिली थी। इसके बाद वे एक सरकारी कॉलेज में लेक्चरर के पद पर नियुक्त हुए थे, जो जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री के कारण मिली थी। पुलिस विभाग में उनके एक करीबी मित्र ने बताया कि ठाकुर हमेशा से ही पुलिस बल में शामिल होना चाहते थे और उन्हें वर्दी पहनने का जुनून था। डोडा क्षेत्र में गोगला जिले के रहने वाले ठाकुर 2011 बैच के जम्मू कश्मीर पुलिस सेवा के अधिकारी थे। अब उनके परिवार में बुजुर्ग माता-पिता और पत्नी सरला देवी तथा 6 साल के बेटे आर्य हैं।