नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2002 गुजरात दंगों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने दंगों के दौरान गैंगरेप का शिकार हुई पीडिता की अवमानना याचिका पर आज सुनवाई की। कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया कि पीड़िता को दो हफ्ते के भीतर 50 लाख रुपये मुआवजा दे। इसके अलावा उसे सरकारी नौकरी और आवास भी दिया जाए। बता दें कि दंंगों के दौरान अहमदाबाद के नजदीक हिंसक भीड़ ने पांच महीने की गर्भवती महिला के साथ गैंगरेप जैसी घिनौनी हरकत को अंजाम दिया था।
बता दें कि गोधराकांड के बाद गुजरात में भड़के दंगों के दौरान अहमदाबाद के नजदीक रणधीकपुर गांव में उग्र भीड़ ने 3 मार्च, 2002 को पीडिता के परिवार पर हमला कर दिया था। इस दौरान 21 साल की पीडिता के साथ गैंगरेप किया गया और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई। विशेष अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को केस में 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। वहीं, पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों समेत सात आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने 4 मई, 2017 को पांच पुलिसकर्मियों और दो डॉक्टरों को अपनी ड्यूटी का सही से निर्वहन नहीं करने, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने के अपराध में आईपीसी की धारा-218 व धारा-201 के तहत दोषी ठहराया था।
पीडिता द्वारा दायर अवमानना याचिका में कहा गया कि कोर्ट के आदेश के सरकार ने फैसले का पालन नहीं किया और उसे राहत नहीं दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश का पालन करने के लिए सिर्फ दो हफ्ते ही दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 को मामले में दिए आदेश में पीड़िता को 50 लाख रुपये मुआवजा, सरकारी नौकरी और घर देने का आदेश दिया था गुजरात सरकार के इसका पालन नहीं दिया को पीडिता ने अवमानना याचिका दायर की थी।
अप्रैल 2019 में मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की पीठ को गुजरात सरकार ने जानकारी दी थी दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो गई और पेंशन लाभ रोक दिए गया है। वहींं बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोषी आईपीएस अधिकारी का दो रैंक डिमोशन कर दिया है। इससे अलावा पीडिता ने पांच लाख के मुआवजे को ठुकरा कर ऐसे मुआवजा मांगा था तो समाज के लिए मिसाल बनें।
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