हल्द्वानी: “पहाड़ में रह कर कुछ नहीं हो सकता, कमाई तो कतई भी नहीं”, पलायन करने वाले तो हमेशा यही दलील दिया करते हैं। मगर कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन ने पलायन नामक बीमारी की भी कमर तोड़ कर रख दी है। कोविड के समय में यहां आए प्रवासी पिछले कई महीनों से आत्मनिर्भरता के नए मुकाम हासिल कर अन्य जनों को भी प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में रह रहे लोगों को अब समझ आ रहा है कि यहां रह कर भी कमाई के बढ़िया साधन पैदा किये जा सकते हैं। स्वरोजगार के ज़रिये शहरों के मुकाबले अपने प्रदेश में भी बेहतर आय स्थापित की जा सकती है।
लोगों के लिये आत्मनिर्भर होने का रास्ता मुश्किल तो है लेकिन उनके पास प्रेरणास्रोतों की ज़रा भी कमी नहीं है। उत्तराखंड में ही अनेकों ऐसे लोग हैं जिन्होंने काफी समय से स्वरोजगार अपनाया हुआ है और अब वे एक अच्छे स्तर पर पहुंच सके हैं। राज्य के कई सारे लोग बीते सालों से अपनी लगन और मेहनत के बलबूते देश और विश्व में आत्मनिर्भर होने की परिभाषा का बेहतर उदाहरण देते आ रहे हैं। ऐसी ही एक मिसाल हैं अल्मोड़ा की प्रीति भंडारी, जिनका नाम आपने राज्य स्थापना दिवस के मौके पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुंह से भी सुना होगा।
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अल्मोड़ा की रहने वाली प्रीति भंडारी ने मशरूम की खेती करके आत्मनिर्भरता का एक नया मुकाम हासिल किया है। प्रीति भंडारी पिछले लगभग पांच सालों से अपने ही गांव में मशरूम की खेती कर रही हैं। प्रीति का काम केवल मशरूम की खेती तक नहीं सिमटा है, बल्कि वे कई सारे युवाओं और क्षेत्र की महिलाओं को भी ट्रेनिंग दे कर आत्मनिर्भर बनने हेतु प्रेरित कर रही हैं। बता दें कि प्रीति भंडारी उन 21 महिलाओं में से एक हैं जिन्हें प्रसिद्ध सम्मान तीलू रौतेली पुरस्कार के लिये भी चुना गया था।
शुरुआत में संसाधनों की अपार कमी होने के कारण प्रीति को खेती करने में खासा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। प्रीति भंडारी ने अपने घर में ही एक छोटे से कमरे में मशरूम के उत्पादन का शुभारंभ किया था। प्रीति भंडारी के अनुसार, उन्होंने पांच साल पहले मात्र 20 बैगों से मशरूम उगाने का काम शुरू किया था। बिना अनुभव और बिना किसी प्रशिक्षण, यह रास्ता प्रीति ने अपनी मेहनत, हौसले और अपनी बुद्धिमत्ता के सहारे पार किया। आज की तारीख में प्रीति लगभग तीन स्थानों पर मशरूम की खेती करती हैं। बता दें कि प्रीति बटन और ढिंगरी दोनों ही किस्म के मशरूम सफलतापूर्वक उगा रही हैं और तो और मार्केट में उनके मशरूम जाते ही बिक जाते हैं।
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प्रीति भंडारी ने बताया कि वे मशरूम की खेती के अलावा इससे जुड़े और उत्पादों में भी रूचि रखती हैं। उन्होंने बताया कि जिस सीज़न में उनका मशरूम सबसे अधिक उत्पादित होता है, उस सीज़न में वे उसका आचार भी बनाती हैं और उस आचार की डिमांड उत्तराखंड ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी होती है।
प्रीति भंडारी ने इन पांच सालों में कई सारे स्पीड ब्रेकर्स का भी सामना किया। इसके अलावा उन्होने कई प्रशिक्षण लिए अथवा मशरूम उगाने से जुड़ी कई नई जानकारी भी एकत्रित की। जिसका परिणाम आज हम सबके सामने है। और इतना ही नहीं अब प्रीति दूसरों को भी मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षित कर रही हैं। वे युवाओं और महिलाओं को खुद भी प्रशिक्षण देती हैं और इसके अलावा स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाले कई सरकारी और सामूहिक प्रशिक्षण केंद्रों में भी उनके द्वारा ट्रेनिंग दी जा रही है। इस प्रगतिशील किसानी और प्रीति की सोच को सराहते हुए सरकार ने उन्हें इस बार तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए भी चयनित किया है।
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