हल्द्वानी: खेल में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष के अलावा संयम की जरूरत होती है। संयम के साथ परिश्रम का रिश्ता की कामयाबी की खूबसूरत तस्वीर पेश करता है। ऐसी ना जाने कितने कहानी हमारे सामने आती हैं। भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को ही देख लिजिए। जो धोनी क्रिकेट खेलते-खेलते रेलवे में नौकरी करने लगा, जिसे डर था कि ये नौकरी उसका खेल ना छिन ले। जिसे टीम में जगह करीब 5 साल बाद मिली लेकिन फिर भी वो भारत के लिए सबसे ज्यादा मैच खेलने वाला खिलाड़ी बना। ये परिश्रम और संयम की दोस्ती ही तो है जिसने धोनी की कहानी को युवाओं के सामने अमर कर दिया है।
आज हम एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में बताने जा रहे है जिसने अपने खेल के लिए लोगों के घर पर पुताई की और बच्चों को पढ़ाया फिर अपने रैकेट खऱीदा। पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी मनोज सरकार ने गरीबी और शारीरिक कमजोरी को हराकर अर्जुन अवार्डी होने का हक हासिल किया है। रुद्रपुर की बंगाली कालोनी में मनोज सरकार का बचपन बिता। एक बार मनोज जब डेढ़ साल का था, तो उसे तेज बुखार आया था।
आर्थिक दशा ठीक नहीं होने के कारण एक झोलाछाप से इलाज कराया जिसकी दवा खाने के बाद उनके पैर में कमडोरी आ गई। गरीबी ने इतना तंग किया था कि वो स्कूल की छुट्टी के दिन उसने पिता के साथ घरों में पुताई का काम भी किया है। थोड़ा बड़ा होने पर ट्यूशन से खर्चे पूरे करने लगा। लोगों को बैडमिंटन खेलता देख उसने खिलाड़ी बनने की ठान ली। परिवार के पास बैडमिंटन खरीदने तक के पैसे नहीं थे।
पहले मनोज समान्य खिलाड़ी के तौर पर खेलता रहा था। स्कूल में उसने राज्य लेवल की प्रतियोगिताओं में भाग भी लिया था। उसके बाद बैडमिंटन खिलाड़ी डीके सेन ने पैरा बेडमिंटन टीम में खेलने की सलाह दी। इसके बाद मनोज ने पीछ़े मुड़कर नहीं देखा। पहले नेशनल फिर इंटरनेशन पैरा बैडमिंटन टीम में जगह बना ली। साल 2017 में पिता मनिंदर सरकार के निधन के बाद मनोज टूट जरूर गया था लेकिन इसने हार नहीं मानी और अपने खेल से अर्जुन पुरस्कार तक पहुंच पूरे उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया। मनोज के एक भाई और दो बड़ी बहने हैं जिनकी शादी हो चुकी है। परिवार ने बताया कि मनोज को अर्जुन अवार्ड मिलना रुद्रपुर और कुमाऊं समेत पूरे राज्य के लिए गर्व की बात है।