Uttarakhand News

उत्तराखंड के आईजी दीपम सेठ की बेटे कामयाबी, CISCE में 98 प्रतिशत अंक


देहरादून: उत्तराखण्ड आईजी दीपम सेठ के बेटे देवभूमि को गौरवान्वित महसूस करा रहे है। दोनों ने पढ़ाई के क्षेत्र में राज्य का नाम रोशन किया है। बड़े बेटे शुभांकर मिहिर सेठ  के बाद छोटे बेटे आर्यमान ने 10वीं क्लास में सीआईएससीई के नतीजों में प्रदेश में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। आर्यमान को 98 प्रतिशत मार्क्स मिले हैं। वहीं बड़े बेटे शुभांकर मिहिर सेठ ने ब्राइटलैंड से 10वीं में पूरे प्रदेश में 98.4 प्रतिशत अंकों के साथ टॉप किया था। दूसरा स्थान प्राप्त करने के बाद आर्यमान ने बताया कि वो  एस्ट्रो फिजिक्स में शोध करना चाहता है। आर्यमान से पहले आईजी दीपम सेठ के बड़े बेटे शुभांकर मिहिर सेठ ने ब्राइटलैंड से 10वीं में पूरे प्रदेश में 98.4 प्रतिशत अंकों के साथ टॉप किया था।

यह भी पढ़ें:हल्द्वानी प्रकाश डेंटल टिप्स- रूट कैनाल उपचार से दूर होगा दांतों का अहसाय दर्द

बड़े भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए आर्यमान ने यह कामयाबी हासिल की है। आर्यमान के पिता आईजी दीपम सेठ और मां डॉ. गौरी सेठ ने भी बेटे के साथ खूब मेहनत की। मां डॉ. गौरी ने बेटे की कामयाबी के बात बताया कि उनका मैन फोक्स बच्चों के टाइम टेबल को लेकर रहता था। अगर टाइम टेबल परफेक्ट रहता है तो पढ़ाई खुद परफेक्ट दिशा की ओर जाती है। उन्होंने कहा कि समय का सही उपयोग करना टाइन टेबल सिखाता है। वहीं पिता दीपम सेठ ने बताया कि बेटे का रुझान पढ़ाई के साथ ही खेल व क्विज प्रतियोगिताओं में भी रहा है और उनकी कोशिश रहती है कि वो दोनों में तालमेल बैठाए। उन्होंने जूनियर नेशनल ताईक्वांडो प्रतियोगिता में दो मेडल हासिल किए हैं।

Join-WhatsApp-Group

यह भी पढ़ें:करीब चार दशकों से अभिभावकों के भरोसे पर खरा उतर रहा है हल्द्वानी का ABM स्कूल

आर्यमान ने ताइक्वांडो में रेड बेल्ट और राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं। वह स्टेट लेवल क्विज और डिबेट में विजेता में भी आते रहते हैं। संगीत और फि ल्मों में उनकी काफी रुचि है। उनकी मां डॉ. गौरी सेठ वर्तमान में आईएमएस यूनिसन यूनिवर्सिटी और डीआईटी यूनिवर्सिटी में में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं।उन्होंने कहा कि उनका बेटा सेल्फ स्टडी में खासा विश्वास रखता है और यही कारण है कि वो खेल और पढ़ाई दोनों में बराबर ध्यान दे पाता है।  आर्यमान ने कभी पढ़ाई को बोझ नहीं माना और माता-पिता ने अपेक्षाओं का बोझ बढ़ने नहीं दिया। आर्यमान का कहना है कि कभी भी वह घंटों के हिसाब से अपनी तैयारी नहीं करते थे बल्कि ऐसा टाइमटेबल बनाते थे, जिसमें खेल भी शामिल रहे।

To Top