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हल्द्वानी के मोहन जोशी का हुड़का विदेशो में वायरल, बयां किया कलाकारों का दर्द


हल्द्वानी: हमारा ध्यान आजकल के नए आधुनिक गीतों पर और नए नए वाद्य यंत्रों पर तो जाता है मगर अक्सर हम अपने ही लोक वाद्य यंत्रों को भूल जाते हैं। हुड़का जो कि उत्तराखंड की संस्कृति के पेट से निकला यंत्र है, यह आज लुप्त होने की कगार पर आ खड़ा हुआ है। लेकिन वर्तमान में उत्तराखंड के अच्छे बांसुरी वादकों में गिने जाने वाले मोहन जोशी अपनी लगन से लगे हुए हैं ताकि वे इस यंत्र को और हमारी संस्कृति के विलुप्त ना होने दें।

उत्तराखंड के हल्द्वानी में रहने वाले और मूल रूप से बागेश्वर निवासी मोहन जोशी बहुत ही खास बांसुरी वादक हैं। 10-12 साल की उम्र से ही बांसुरी वादन में सक्रिय मोहन जोशी तकरीबन पिछले पांच-छह सालों से बांसुरी और हुड़का बना भी रहे हैं। हल्द्वानी लाइव से बात करते हुए मोहन जोशी ने बताया कि हुड़का उत्तराखंड का एक लोक वाद्य यंत्र है जिसे उत्सवों में बजाया जाता था। लेकिन मौजूदा समय में हुड़का लुप्त होता जा रहा है।

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इसी कड़ी में जब मोहन जोशी ने जाना कि हमारा लोक वाद्य यंत्र विलुप्ति की कगार पर है तो उन्होंने खुद ही हुड़का बनाने की शुरुआत कर दी। पहले उन्होंने हुड़का बनाने के लिए गांव के इलाकों में भ्रमण कर बुज़ुर्गों से सीख ली। उसके बाद धीरे धीरे बांसुरी और हुड़का बनाकर उसका प्रचार प्रसार शुरू कर दिया। आपको बता दें कि मोहन जोशी केवल उत्तराखंड या भारत ही नहीं बल्कि विदेशों तक में अपने बनाए बांसुरी और हुड़के पहुंचा चुके हैं।

बांसुरी वादन की बात करें तो मोहन जोशी ना केवल लोक संगीत बल्कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी बहुत रुचि रखते हैं। बचपन से ही को उत्तराखंडी, कुमाऊंनी व गढ़वाली गीत और पारंपरिक धुनों को अपनी बांसुरी पर बजाने वाले मोहन जोशी को प्रयाग संगीत समिति (इलाहाबाद) से संगीत प्रभाकर की उपाधि भी मिली है। आपको बता दें कि मोहन जोशी विभिन्न रेडियो स्टेशनों से और चैनलों से अपनी कला का परिचय दे चुके हैं।

मोहन जोशी से जब पूछा गया कि कलाकारों की जिंदगी में कोरोना काल का क्या प्रभाव रहा तो उन्होंने बताया कि कई साथी कलाकारों ने परेशान होकर संगीत व कला की दुनिया छोड़ दी। उन्होंने कहा कि हम इसलिए रुक गए क्योंकि इतना लंबा रास्ता अभी तक तय कर लिया है तो आगे तो जाना चाहिए। मोहन जोशी ने कहा कोरोना काल में ना तो हुड़का बनाकर ही पेट पाल सकते थे और ना ही प्रोग्राम कर के। आज की तारीख में कलाकार बने रहना एक बड़ा कठिन काम है। बांसुरी वादन के प्रोेग्रामों में ले दे कर कुछ आय हो पाती है। मोहन जोशी कहते हैं कि कुछ समय पहले तक वे भी नौकरी के साथ कला को आगे बढ़ा रहे थे। मगर दो नांव में पैर रखना मुश्किल हो रहा था। इसलिए सपने को आगे बढ़ाना बेहतर समझा।

अब इस बीच जैसे-जैसे कोरोना खात्मे की तरफ बढ़ रहा है, वैसे ही धीरे-धीरे स्टूडियो खुल रहे हैं, गाने की रिकॉर्डिंग शुरू हो रही हैं। मोहन जोशी ने यह भी कहा कि हम कलाकारों को किसी भी सरकार से कोई उम्मीद नहीं है। हमें पता है कोई कलाकारों की मदद करने नहीं आता। बहरहाल कोरोनाकाल और दुनियाभर की समस्याओं के बाद भी मोहन जोशी अपने सपने पूरे करने के साथ साथ उत्तराखंड का लोक संस्कृति और वाद्य यंत्रों को बढ़ावा दे रहे हैं। वाकई में ऐसी शख्सियत को सलाम है।

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