देहरादून: बेटियों की संख्या को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार ने क्या कुछ प्रयास नहीं किए। सबसे बड़ा नारा दिया गया…बेटी बटाओ बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao Beti Padhao)। मगर इस नारे के बावजूद बेटियों की संख्या (Daughters birth rate decreasing) कम हो रही है। जी हां, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के शहरी (Uttarakhand cities) इलाकों में बेटियों की संख्या घट रही है। कुल आबादी में प्रति हजार लड़कों पर केवल 943 लड़कियां (Sex ration in cities) हैं। शहरों में लिंगानुपात चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है। विशेषज्ञों की मानें तो उनका यही कहना है कि लिंगानुपात में गिरावट का बड़ा कारण भ्रूण के लिंग परीक्षण का होना है।
गौरतलब है कि लिंग परीक्षण करने गैर कानूनी है। मगर लिंगानुपात गिरने के आंकड़े यही दर्शाते हैं कि अब भी शहरों में लिंग बताने वाले सेंटर सक्रिय हैं। बुधवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार (according to reports) प्रदेश में बालिका जन्मदर भी 2.1 से घटकर 1.9 पर पहुंच गई है। बता दें कि परिवार नियोजन अपनाने वालों की संख्या 70 फीसदी तक पहुंच गई है।
हर तरफ ये कहा जाता है कि गांवों में पुरानी सोच के चलते लोग बेटियां नहीं चाहते। इस हिसाब से तो गांवों में लिंगानुपात में गिरावट शहरों से अधिक होनी चाहिए। जबकि उत्तराखंड में ठीक इसका उलट हो रहा है। जहां शहरों में 1000 लड़कों पर 943 लड़कियां हैं। वहीं ग्रामीण इलाकों में 1000 लड़कों पर यह संख्या 1052 बताई गई है।
चौंकाने वाली बात यही है कि गांव में बेटियों के प्रति शहरों से ज्यादा जागरुकता है। इस रिपोर्ट से उक्त बात सिद्ध हो जाती है। हो ना हो, सरकार नवजात बच्चों की मृत्यु दर को कम करने में नाकाम रही है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में नवजात मृत्यु दर 27.9 से बढ़कर 32.4 तक पहुंच गई है। रिपोर्ट्स इसका एक कारण अस्पतालों में एनआईसीयू की भारी कमी को बता रही हैं। प्रदेश के कई अस्पतालों में एनआईसीयू का अभाव है। जहां ये बनाए भी गए हैं वहां पर स्टाफ व डॉक्टर पर्याप्त नहीं है।