Editorial

विशाखापट्टम की 11 साल बाद धोनी को सबसे बड़ी संजीवनी


हल्द्वानी: आखिरकार टीम इंडिया ने वनडे क्रिकेट में लंबे समय बाद कोई सीरीज जीत ही ली। भारतीय टीम ने न्यूजीलैंड को 5वें व फाइनल मुकाबले में 190 रनों से शिकस्त दी।  विराट कोहली की कप्तानी में टेस्ट क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही टीम का वनडे में प्रदर्शन कुछ खास नही था। खासकर महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में सीरीज जीत मानों टीम इंडिया से नाराज चल रही थी। बुरा वक्त हर किसी खिलाड़ी का आता है वैसा ही कुछ भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ भी हो रहा था और धोनी को संजीवनी दी उस मैदान ने जहां से उन्होंने अपनी बल्लेबाजी के लोहे को मनवाना शुरू किया था। विशाखापट्टम का  मैदान ने भारतीय वनडे कप्तान के लिए एक बार फिर मंदिर साबित हुआ।  ऐसा हम इसलिए कह रहे क्योंकि पिछले 19 महीने से भारतीय टीम ने केवल जिम्बावे से ही सीरीज जीती थी। बांग्लादेश,ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका के खिलाफ टीम को सीरीज हार का सामना करना पड़ा था। इसके साथ ही वनडे विश्वकप और वर्ल्ड टी-20 में भी टीम उम्मीदों पर खड़ी नही हो सकी थी। हालांकि धोनी की कप्तानी में भारत ने 2016 में छोटे फॉर्मेट में शानदार प्रदर्शन किया है। भारत ने कंगारुओं को उसी की धरती में टी-20 सीरीज में 3-0 से हराया था । उसके बाद श्रीलंका टी-20 सीरीज और एशिया कप में भी टीम को जीत  मिली थी। लेकिन वनडे में टीम का खेल कुछ खास नही रहा जिससे धोनी की कप्तानी पर भी सवाल उठने लगे थे। उसी के उलट टेस्ट में विराट कोहली की अगवाई में टीम ने नंबर वन की कुर्सी भी हासिल की। जिसके बाद कई क्रिकेट विशेषज्ञों ने कोहली को वनडे कप्तान बनाने की वकालत शुरू कर थी।

 

कहते है ना अच्छे खिलाड़ी को केवल एक मौके की तलाश होती है जहां वो गति पकड़ सके वैसा ही कुछ कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने किया। पहले युवा टीम के साथ जिम्बावें में वनडे और टी-20 सीरीज पर कब्जा जमाया और अब कीवियों को पटकनी दी। इस सीरीज में कप्तान धोनी की पुरानी बल्लेबाजी की झलक भी दिखी जो संदेशा देती है कि 3-2 से सीरीज जीत कोई तुक्का नही बल्कि भारतीय टीम का शेर अब दुबारा विरोधियों की वाट लगाने के लिए तैयार हो है। न्यूजीलैंड के खिलाफ धोनी सीरीज में 143 रन बनाए जिसमें एक अर्द्धशतक भी शामिल है। इस सीजन में टीम इंडिया को कम वनडे खेलने है तो ये धोनी के लिए चुनौती है कि मिले हुए मौके को चैंपियन से पहले भुना लिया जाए।

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विशाखापट्टम  ने 2005 में भारतीय क्रिकेट को  “धोनी” के रूप में एक नयाब तोहफा दिया था। पाकिस्तान के खिलाफ उस मुकाबले में महेंद्र सिंह धोनी ने 148 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेली थी। जिसके बाद पूरे विश्व में धोनी ने अपनी बल्लेबाजी और कप्तानी का थंका बजाया। शनिवार को खेले गए आखिरी वनडे में न्यूजीलैंड के खिलाफ मैदान में उतरने से पहले ही धोनी की कप्तानी की चमक दिखना शुरू हो गई थी। तीन स्पिन गेंदबाजों के साथ उतरने के फैसले ने टीम को वनडे में चौथी सबसे बड़ी जीत हासिल की। भारत ने न्यूजीलैंड को 270 रनों का लक्ष्य दिया था और किवी टीम 25 ओवर पहले 79 रनों पर ढेर हो गई। विशाखापट्टम ने 11 साल बाद अपने सबसे बड़े खिलाड़ी को एक बार फिर जीत संजीवनी दे दी है।

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