अल्मोड़ा– उत्तराखंड में सामाजिक सुरक्षा की तरफ सरकारें कितना ध्यान देती है इसकी पोल ये ख़बर खोलती है।उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के चौखुटिया इलाके के खुजरानी गांव में एक किशोरी की जान इस वजह से गयी क्योकिं उसे दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही थी। इस ख़बर की जानकारी मिलने को बाद पूरे उत्तराखंड में हड़कंप मच हुआ है। लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है कि भूखमरी से भी पहाड़ में जान जा सकती है। इस घटना की लीपापोती की कोशिश प्रशासन द्वारा शुरु कर दी गई है। अल्मोड़ा के डीएम सचिन बंसल का कहना है कि घटना के फौरन बाद मामले का संज्ञान लेते हुए चौखुटिया के उपजिलाधिकारी को मौके पर भेज कर उसकी पड़ताल करायी जा रही है। उन्होंने बताया कि जिस गांव में ये घटना घटी है वो सड़क मार्ग से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव है।बंसल ने ये भी बताया कि दो सप्ताह पहले उन्होंने इस क्षेत्र में कैंप लगाया था और तब इस परिवार के चार सदस्यों के मानसिक रोग से ग्रस्त पाये जाने पर उन्होंने उनके लिये मौके पर ही पेंशन स्वीकृत करवायी थी । उन्होंने कहा कि प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और जल्द ही उन्हें पेंशन मिलने लगेगी ।इस मामले केे उजागर होने पर सूबे में राजनीति शुरु हो गई है। इस मामले पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने किशोरी के परिजनों को 21,000 रू की सहायता राशि भेजी है ।उपाध्याय ने त्रिवेंद रावत सरकार पर हमला करते हुए कहा कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट, बाल विकास और महिला सशक्तिकरण राज्य मंत्री रेखा आर्य जैसे दिग्गजों के क्षेत्र में भुखमरी से मौत होने की खबर और भी चिंता की बात है । हम आपको ये भी घटनास्थल पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के गांव मोहनरी के भी नजदीक है। हरीश रावत ने ट्वीटर पर लिखा उन्होंने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए राज्य सरकार को किशोरी के परिजनों की देखभाल की जिम्मेदारी लेने को कहा है। द्वाराहाट के वर्तमान बीजेपी विधायक महेश नेगी ने भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिख खुजरानी गांव में हुई घटना की जानकारी दी। नेगी ने बताया कि पिछले 10 साल से अभावग्रस्त जीवन जी रहे परिवार की किशोरी सरिता की 15 अप्रैल को मौत हो गयी । उन्होंने बताया कि परिवार के मुखिया की भी कुछ समय पहले मौत हो चुकी है ।नेगी ने मुख्यमंत्री से परिवार के लिये जल्द से जल्द मदद की गुहार भी लगाई है ।पर सवाल ये है कि क्या उस किशोरी को समय रहते मदद कर उसकी अमूल्य ज़िदंगी बचाई नहीं जा सकती थी? ये घटना पहाड़ पर एक बड़ा कलंक है जो नेताओं और अफसरशाही की पोल खोलता है।