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जान पर खेलकर स्कूल जाते बच्चे! चुकुम गांव की दर्दनाक हकीकत पढ़ें…

School students crossing the swollen
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रामनगर: सरकारें कागज़ पर विकास के दावे तो बहुत करती हैं लेकिन नैनीताल जिले के रामनगर तहसील का आपदाग्रस्त राजस्व गांव चुकुम इन दावों की सच्चाई उजागर करता है। हर साल बरसात आते ही यहां के हालात ऐसे हो जाते हैं कि गांव का ज़िला और ब्लॉक से संपर्क पूरी तरह कट जाता है।

कोसी नदी के पार बसे इस गांव की दूरी रामनगर से करीब 24 किलोमीटर है….जहां करीब 120 परिवार रहते हैं। सबसे बड़ी मुश्किल तब होती है जब गांव के बच्चे पढ़ाई के लिए रोज़ नदी पार करते हैं वह भी तेज बहाव के बीच किताबों को सिर पर उठाकर और गिरते-पड़ते स्कूल पहुंचते हैं।

चुकुम गांव के छात्र-छात्राओं की कहानी सुनकर किसी का भी दिल दहल जाए। वे कहते हैं हर दिन नदी पार करते हैं, कई बार गिरते हैं, कपड़े और किताबें भीग जाती हैं और चोट भी लगती है…लेकिन पढ़ाई तो करनी है। बच्चों को करीब 3 किलोमीटर दूर मोहान स्थित राजकीय इंटर कॉलेज जाना पड़ता है, क्योंकि गांव में सिर्फ 10वीं तक का स्कूल है।

ये बच्चे बैग में अतिरिक्त कपड़े और जूते लेकर चलते हैं। नदी पार करने के बाद पेड़ों की आड़ में कपड़े बदलकर स्कूल जाते हैं। बरसात में नदी का जलस्तर बढ़ते ही खतरा और बढ़ जाता है।

ग्रामीणों की मांग बहुत पुरानी है साल 1993 से विस्थापन की मांग कर रहे हैं…लेकिन आज तक सिर्फ वादे और सर्वे ही हुए। साल 2016 में सर्वे हुआ, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई। पहले केलाखेड़ा (जसपुर) में जगह तय हुई…लेकिन ग्रामीणों ने वहां जाने से इंकार कर दिया। अब रामनगर के आमपोखरा रेंज के पास नई जगह चिन्हित की गई है।

हर साल मानसून में कोसी नदी का जलस्तर इतना बढ़ जाता है कि गांव का ब्लॉक, तहसील और जिले से संपर्क टूट जाता है। साल 2021 में हालात इतने बिगड़े कि प्रशासन को हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचानी पड़ी थी। ग्रामीण पहले से राशन जमा करके रखते हैं…फिर भी डर बना रहता है।

प्रशासन ने हाल ही में एक वैकल्पिक रास्ते का सर्वे कराया है कुनखेत से चुकुम तक जिसे फॉरेस्ट बटिया कहा जाता है। यह रास्ता भी जंगल से होकर गुजरता है और बरसात में कई जगह नाले और दलदल बन जाते हैं। फिर भी आपातकाल में ट्रैक्टर, जेसीबी और राफ्टिंग से राहत पहुंचाने की कोशिश की जाएगी।

आज जब सरकारें डिजिटल इंडिया और स्मार्ट विलेज की बातें करती हैं चुकुम गांव के लोग तीन दशक से विस्थापन का इंतजार कर रहे हैं। यह गांव सिर्फ एक जगह की कहानी नहीं…बल्कि पूरे सिस्टम की तस्वीर है…जहां कागजों पर विकास की इबारतें लिखी जाती हैं, लेकिन ज़मीन पर हालात वैसे के वैसे रहते हैं।

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