
उत्तरकाशी: कहते हैं कि मंज़िल उन्हीं को मिलती है जिनके इरादे मजबूत होते हैं। बड़कोट तहसील के डख्याट गांव के दिग्विजय जिन्दवाण ने इस कहावत को अपने संघर्ष से सच कर दिखाया है। साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले दिग्विजय ने दिन में कैफे में वेटर की नौकरी करते हुए और रात में पढ़ाई कर नीट परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर 4918वीं रैंक हासिल की है।
सिर्फ साढ़े सत्रह साल के दिग्विजय के पिता आनंद पाल गांव में भेड़-बकरी पालते हैं, जबकि मां कृष्णा देवी गृहिणी हैं। उनके दो छोटे भाई हैं, जिनमें एक बोलने-सुनने में अक्षम है और उत्तरकाशी में सब्जी की दुकान पर काम करता है…वहीं सबसे छोटा भाई बारहवीं कक्षा का छात्र है।
दिग्विजय ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट गांव के राजकीय इंटर कॉलेज राजगढ़ी बड़कोट से की, जहां उन्होंने हाईस्कूल में 68% और इंटर में 62% अंक प्राप्त किए। इंटर में एक विषय में बैक लगने की वजह से वह पहले प्रयास में नीट पास नहीं कर पाए। मगर उन्होंने हार नहीं मानी।
परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने एक साल का गैप लिया और उत्तरकाशी में एक कैफे में सुबह 9 से रात 9 बजे तक वेटर से लेकर प्रबंधन तक का काम किया। लंच टाइम और रात 9 बजे के बाद वो पढ़ाई करते रहे। इसी लगन और मेहनत का नतीजा रहा कि इस बार नीट परीक्षा में उन्होंने ऑल इंडिया 4918 रैंक हासिल की।
दिग्विजय का सपना बैचलर ऑफ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंसेज (BNYS) में दाखिला लेकर करियर बनाना है। उन्होंने इसके लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
कैफे के मालिक जसवीर असवाल ने दिग्विजय की सफलता पर उन्हें शुभकामनाएं दीं और कहा कि उन्होंने साबित कर दिया कि मेहनत और ईमानदारी का फल ज़रूर मिलता है।
दिग्विजय का कहना है कि नौकरी और पढ़ाई को एक साथ करना मुश्किल ज़रूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। उन्होंने कहा कि अगर इरादा पक्का हो…तो वक्त निकालकर भी पढ़ाई की जा सकती है और सफलता पाई जा सकती है।
उनकी यह कहानी हर उस युवा के लिए मिसाल है, जो मुश्किल हालात से घबराकर अपने सपनों का पीछा छोड़ देते हैं। दिग्विजय ने दिखा दिया कि मंज़िल उन्हीं को मिलती है….जिनके हौसलों में उड़ान होती है।
