हल्द्वानी: कोरोना महामारी ने इंसान की कमर ज़रूर तोड़ी, युवाओं की नौकरियों पर गाज़ जरूर गिराई। मगर युवाओं ने आपदा में अवसर को खोज निकाला। ऐसी ही एक कहानी है चंपावत के नरेंद्र बिनवाल की। नरेंद्र बिनवाल ने लॉकडाउन के कारण नौकरी छूटने के बाद अपने दोस्त के साथ हल्द्वानी में स्पेशल चाय की दुकान खोली है। आत्मनिर्भर बनने का यह प्रयास लोगों को खूब भा रहा है। आपको बता दें कि नरेंद्र बिनवाल और विशाल चौधरी की चाय की दुकान ”चाय कुंड भोज कुंड” में 27 प्रकार की चाय उपलब्ध है।
चंपावत निवासी नरेंद्र बिनवाल गुड़गांव में नौकरी करते थे। कोरोना के डर से वह महीनों अपने घर नहीं आ सके। वह गुडगांव के अपने कमरे में ही बंद रहे। इसी बीच उन्होंने आत्मनिर्भर बनने का सपना देखना शुरू किया। उनके दिमाग में कई ख्याल आए जिसको उन्होंने दोस्त हल्द्वानी निवासी विशाल चौधरी के साथ समय समय पर साझा किया। विशाल चौधरी और नरेंद्र बिनवाल पूरे लॉकडाउन, फोन पर व्यवसाय के नए-नए तौर तरीके एक दूसरे से साझा किया करते थे।
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जब आखिरकार जनवरी में नरेंद्र बिनवाल चंपावत आए तो वह पहले अपने मित्र से रूबरू हुए। उन दोनों के पास एक आइडिया था जो देशी भी था और मेहनत से फायदेमंद भी साबित हो सकता था। दोनों ने स्पेशल चाय की दुकान खोलने के बारे में सोचा। तब उन्होंने एक चाय की दुकान खोजनी शुरू की। हालांकि दुकान खोजने में खासा मुश्किल आई, वजह यह कि उन्हें उनके बजट के अनुसार कहीं पर भी दुकान नहीं मिल पा रही थी। लेकिन कहते हैं ना हिम्मत करने वाले के साथ तो भगवान भी खड़ा रहता है।
ऐसे में दुकान मिली और उन्होंने दुकान में सीमित संसाधनों में ही काम शुरू करवाए। विशाल चौधरी बताते हैं कि दुकान में सारे चाक-चौबंद करने के लिए बड़ी दिक्कतों का सामना इसलिए भी करना पड़ा क्योंकि दोनों मित्रों के पास ही गाड़ी की व्यवस्था नहीं थी और इन दोनों को पैदल ही हर चीज सुनिश्चित करने के लिए जाना पड़ता था।
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बहरहाल बिग बाजार के सामने स्थित दुकान का शुभारंभ 30 जनवरी को किया जा चुका है। दुकान का नाम चाय कुंड भोज कुंड रखा गया है। इस दुकान की खासियत है कि यहां पर 27 तरह की चाय उपलब्ध हैं। इसके साथ अन्य खाने के सामान भी आपको यहां मिल सकते हैं।
खास बात यह भी है कि दुकान का नाम तो देशी है ही। इसके साथ ही हरेक चाय को मिट्टी के कुल्हड़ों में भरकर ग्राहकों को दिया जाता है। दोनों मित्र बताते हैं कि मिट्टी के कुल्हड़ के इस्तेमाल से एक तो प्लास्टिक डिस्पोज़ल से होने वाले प्रदूषण पर रोक लगती है। दूसरा मिट्टी का काम करने वाले गरीब तबके के परिवारों को भी इससे खासा फायदा मिलता है। खैर अब यह दुकान की गाड़ी निकल पड़ी है और आत्मनिर्भरता की तरफ तेज़ी से अग्रसर है।