नई दिल्लीः बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (चमकी बुखार) का कहर जारी है, मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के कारण मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ. शैलेष प्रसाद सिंह ने कहा कि चमकी बुखार से अब तक मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 113 हो गया है। बुखार से मरने वालों की सख्यां दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जारी है।
चमकी बुखार से मरने बच्चों को परिवार वालों को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 4-4 लाख रुपए सहायता राशि देने की घोषणा की है। बता दें कि 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। मरने वाले बच्चों की उम्र एक से सात साल के बीच ज्यादा है। डॉक्टरों के मुताबिक, इस बीमारी का मुख्य लक्षण तेज बुखार, उल्टी-दस्त, बेहोशी और शरीर के अंगों में रह-रहकर कंपन (चमकी) होना है। बरसात से पहले ये बीमारी हर साल बिहार में कहर बरपाती है। इसकी पूरी जांच की जा रही है।
डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी का प्रकोप उत्तरी बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहारी और वैशाली जिले में सबसे ज्यादा है। अस्पताल पहुंचने वाले पीड़ित बच्चे इन्हीं जिलों से हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रभावित जिलों के सभी डॉक्टर्स तथा जिला प्रशासन ने पीड़ितों को सभी आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कहा है। राज्य के स्वास्थ्य सचिव पूरे मामले पर नजर रख रहे हैं।
दरअसल गर्मियों के दौरान इस इलाके के गरीब परिवारों से संबंधित बच्चों को आमतौर पर नाश्ते के लिए सुबह से ही लीची खाने को दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह फल बच्चों में घातक मेटाबॉलिक बीमारी पैदा करता है, जिसे हाइपोग्लाइसीमिया इंसेफेलोपैथी कहा जाता है। लीची में मिथाइल साइक्लोप्रोपाइल-ग्लाइसिन (MCPG), नाम का एक केमिकल भी पाया जाता है। जब शरीर में देर तक भूखे रहने और पोषण की कमी के कारण शरीर में शुगर लेवल कम हो जाता है तो यह मस्तिष्क को प्रभावित करता है। बिहार के स्वास्थ्य अधिकारियों ने माता-पिता को सलाह दी है कि वे अपने बच्चों को खाली पेट लीची न खिलाएं और आधा पका हुआ या बिना लीची वाला भोजन ही करें।