मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि है साइंस सिटी के लिए इस क्षेत्र को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां पर अनेक शिक्षण संस्थांन हैं। यह एक तरह से ऐजुकेशन हब है। देशभर से छात्र यहां पर शिक्षा ग्रहण करने लिए आते हैं। यह साइंस सिटी बड़े आर्कषण का केन्द्र बनेगी। इस संस्थान के बनने के बाद यहां पर अनेक वैज्ञानिक गतिविधियां होंगी। जिससे हमारी नई पीढ़ी वैज्ञानिक अन्वेषणों और गतिविधियों से प्रेरित होगी। यह विज्ञान केन्द्र युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा केन्द्र बनेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि 2005 में जब गुजरात में सांइस सिटी बन रही थी, उस समय मैंने उसे देखा और उसी से प्रेरित होकर उत्तराखण्ड में सांइस सिटी के निर्माण के लिए सोचा था। उन्होंने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि उत्तराखण्ड की साइंस सिटी का शिलान्यास करने का मुझे अवसर मिला है। यह देश की पांचवी साइंस सिटी होगी।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि प्रदेश में पानी की समस्या का समाधान करना राज्य सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में है। उन्होंने कहा कि आने वाले 3 साल में देहरादून जिले की 60 प्रतिशत जनसंख्या को ग्रेविटी वाॅटर पर लाने का लक्ष्य रखा गया है. सोंग बांध भी 50 साल तक जल स्तर की समस्या को समाप्त करने में सहायक होगा। सौंग बांध पर कार्य प्रारम्भ होने के बाद 350 दिनों में पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। इससे प्रतिवर्ष सवा करोड़ रूपये की बिजली की बचत भी होगी। इस बिजली का हम अन्य कार्यों में उपयोग करेंगे। इसके साथ ही हल्द्वानी शहर के लिए जमरानी बांध से ग्रेविटी वाॅटर की तैयारी कर रहे हैं इसके लिए हमने माननीय प्रधानमंत्री जी को अवगत भी कराया है।
बहुउद्देश्यी जमरानी बांध परियोजना के लिये भी पर्यावरण मंत्रालय द्वारा स्वीकृति प्रदान कर दी है। परमेश्वर अयर जिन्होंने स्वच्छ जल की परिकल्पना दी, उन्होंने भरपूर सहयोग का आशवासन भी दिया है। पंचेश्वर बांध पर भी हमने कैबिनेट में निर्णय लिया उससे भी हम ग्रेविटी वाॅटर पूरे ऊधम सिंह नगर को देंगे। बरसात का पानी इकठ्ठा करने के लिए वाॅटर काॅर्पस बनाया जा रहा है. पौड़ी में झील का निर्माण किया जा रहा है जिसकी क्षमता 80 करोड़ लीटर की होगी। गैरसेंण, पिथौरा़गढ़ आदि जगह भी इस तरह की योजनाएं बनाई जा रही हैं। विधायक सहदेव सिंह पुण्डीर ने कहा कि उत्तराखण्ड में साइंस सिटी बनने के बाद, यहां होने वाली अनेक वैज्ञानिक गतिविधियों व नई तकनीक के प्रयोग बच्चों को विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों व शोध के लिए प्रेरित करेगें। वैज्ञानिकों द्वारा दिये जाने वाले व्याख्यान व अन्य गतिविधियां भविष्य में आकर्षण का केन्द्र बनेंगे।