नैनीतालः सरोवर नगरी पूरी दुनिया में फैमस है। नैनीताल की सुंदरता का लुत्फ उठाने के लिए सालाना यहां सैकड़ों पर्यटक आते हैं। नैनीताल का सबसे बड़ा आकर्षण का कैंद्र यहां की झील है जो इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाती है। नैनीताल की सुदंरता के तो पूरे विश्व में चर्चे हैं ही, लेकिन अब नैनीताल को एक और बड़ी उपलब्धि मिली है। इसरो के वैज्ञानिकों की टीम ने पहली बार नैनीझील की 78 हजार बिंदुओं की गहराई मापते हुए कॉटूर लेक प्रोफाइल तैयार कर रिपोर्ट उपलब्ध करा दी है। झील के पानी की गुणवत्ता संबंधी आंकड़ों को भी पहली बार जीआईएस प्रोफाइल पर प्रदर्शित कर पानी की गुणवत्ता का मान चित्रीकरण किया है।
बता दें कि टीडीएस रिपोर्ट के आधार पर झील का पानी पीने लायक है। डीएम सविन बंसल ने सोमवार को कलेक्ट्रेट परिसर में पत्रकार वार्ता में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कॉटूर मैपिंग के तहत नैनीझील की न्यूनतम गहराई चार से सात मीटर और अधिकतम गहराई (पाषाण देवी मंदिर के सामने) 24.6 मीटर ज्ञात हुई है। वहीं नैना देवी मंदिर के सामने गहराई 23 मीटर है। औसत गहराई नौ मीटर है। पानी का टोटल डिजॉल्व सॉलिड (टीडीएस) 300 से 700 मिलीग्राम प्रति लीटर है, जो पानी की अच्छी गुणवत्ता को दर्शाता है। टीडीएस यानी पानी में घुले ठोस पदार्थ। पानी में आक्सीजन की मात्रा (डीओ) अधिकतम 7.5 मिलीग्राम प्रति लीटर और न्यूनतम छह से सात मिलीग्राम प्रतिलीटर है। डीएम का कहना है कि इसरो के माध्यम से प्रतिवर्ष मानसून से पहले और मानसून के बाद झील के पानी का परीक्षण कराया जायेगा।
डीएम बंसल ने बताया कि उनके द्वारा भेजे गए प्रस्ताव के तहत यूनाइटेड नेशन (यूएन) ने नैनीझील के पानी की सतत निगरानी परियोजना स्वीकृत कर ली है। शीघ्र ही इस पर काम शुरू होगा। डीएम ने दावा किया कि जिला प्रशासन की ओर से झील का वैज्ञानिक और प्रमाणिक डाटा उपलब्ध कराने के बाद यूएन ने देश में पहली बार किसी झील की सतत निगरानी परियोजना (स्टडी प्रोजेक्ट) को स्वीकृत किया है।
यह प्रोजेक्ट लगभग 55 लाख का है। डीएम का कहना है कि नैनीझील की सतत निगरानी परियोजना के तहत यूएनडीपी की ओर से तल्लीताल और मल्लीताल में पानी की गुणवत्ता मापने के लिए सेंसर लगाए जाएंगे। लोगों को पानी की गुणवत्ता की जानकारी देने के लिए तल्लीताल और मल्लीताल में एलईडी मॉनीटर लगाया जाएगा।
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