हल्द्वानी: पूरा देश भारतीय फौज की कारगिल विजय (शौर्य) दिवस के मौके पर देश के वीरों को याद कर रहा है। उनके परिवार को सलाम कर रहा है जिसने अपने घर के सदस्य के खोने के बाद चुनौतियों के सामना किया और अपने संघर्ष को कामयाबी में बदला। ऐसा ही है वीर नायक व सेना मेडल प्राप्त मोहन सिंह का परिवार।
साल 1999 में मोहन दुश्मनों से लोहा लेते हुए वीरगती को प्राप्त हो गए। 12 जुलाई 1999 को उनके परिवार को इस बारे में सूचित किया गया। परिवार सदमे में चला गया। तीन बच्चे थे जिनकी जिम्मेदारी पत्नी उमा देवी के सिर पर आ गई थी। उस वक्त उनका परिवार रानीखेत में रहता था। 13 जुलाई को वीर नायक मोहन सिंह पार्थिव शरीर अपनी देवभूमि को आखिरी सलाम करने पहुंचा। जिस तरह मोहन ने दिश्मनों से देश की रक्षा की उसी तरह पत्नी उमा ने भी चुनौतियों को अपने बच्चों की परवरिश से दूर रखने का फैसला किया।
उमा बताताी है कि जिस वक्त ये हादसा हुआ उस वक्त उनकी बड़ी बेटी रंजना 6 साल की थी, दूसरी बेटी मिताली 4 साल और छोटा बेटा प्रहलाद 16 महीने का था। बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए उन्होंने रानीखेत से हल्द्वानी आने का फैसला किया। सरकार से मदद मिली तो उन्होंने शहर के मथुरा विहार में एक घर खरीदा। सास-ससुर बैरी बने तो अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए उमा ने अपने ससुराल से भी मुंह फेर लिया। कई मुश्किले सामने आई लेकिन उमा ने हार नहीं मानी और उसकी जीत की कहानी उसके बच्चों ने लिख दी। आज उमा की बड़ी बेटी रंजना एमबीए करने के बाद आईटी कंपनी में नौकरी कर रही थी। छोटी बेटी बीफॉर्मा करने के बाद भीमताल से एमफॉर्मा कर रही है। वही सबसे छोटा बेटा प्रहलाद बीबीए तृतीय वर्ष में पहुंच गया है। उमा बताती है कि उनकी इस लड़ाई में सरकार व सेना ने परिवार का काफी सहयोग किया।