नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन को देश को सौंप दिया है। पूरे विधि-विधान के साथ संसद में सेंगोल की स्थापना की गई है, जिसकी चर्चा हो रहा है। आपकों बता दें कि सेंगोल का इतिहास आधुनिक तौर पर भारत की आजादी से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा सेंगोल राजाओं के राजदंड के तौर पर भी जाना जाता है।
28 मई 2023 के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूजा के बाद सेंगोल (Sengol) को नए संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया। अब पूरा देश सेंगोल के बारे में जानना चाहता है जो इस लेख के माध्यम से हम बताने जा रहे हैं।
सेंगोल के इतिहास पर एक नजर
सेंगोल को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। 14 अगस्त 1947 में जब अंग्रेजों ने सत्ता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपी तो सेंगोल भी दिया था। संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जानकारी दी कि तमिलनाडु के एक पवित्र शैव मठ ने भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक के तौर पर पंडित (जवाहरलाल) नेहरू को एक पवित्र राजदंड दिया गया था, लेकिन इसे ‘चलते समय सहारा देने वाली छड़ी’ की तरह बताकर किसी संग्रहालय में भेज दिया गया। प्रख्यात नृत्यांगना डॉ. पद्मा सुब्रह्मण्यम ने प्रधानमंत्री कार्यालय को सेंगोल के बारे में करीब 2 साल पहले बताया था। इसके बाद सेंगोल को ढूंढने का काम शुरू हुआ था।
आजादी और सेंगोल
सेंगोल को लेकर एक तथ्य आजादी से भी जुड़ा है। भारत के आजाद होते वक्त वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पूर्व पीएम नेहरू से पूछा कि भारतीय परंपराओं के अनुसार देश को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक क्या होना चाहिए। पीएम नेहरू ने भारत के प्रथम गवर्नर सी राजगोपालाचारी से इसको लेकर चर्चा की तो उन्हें राय दी गई कि भारतीय परंपराओं के अनुसार, ‘सेंगोल’ को ऐतिहासिक हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में चिह्नित किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने तमिल संस्कृति और चोल राज परंपरा का ही हवाला दिया।
इसके आधार पर, नेहरू ने अधीनम से सेंगोल को स्वीकार किया, जिसे विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था। एतिहासिक दस्तावेज बताते से प्रमाण मिला है कि सी राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु के तंजौर के धार्मिक मठ – थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया था। अधीनम के नेता ने उनके कहने के बाद ‘सेंगोल’ की तैयारी शुरू कर दी थी। तंजौर ही इतिहास का तंजावुर है, जहां एक समय चोल राजवंश की महान राजधानी थी।
भाजपा और कांग्रेस
सेंगोल की जानकारी को लेकर कांग्रेस ने सवाल उठाए तो तमिलनाडु में एक मठ के प्रमुख ने भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सेंगोल लॉर्ड माउंटबेटन को सौंपा गया था और फिर इसे 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भेंट किया गया था तथा कुछ लोगों द्वारा इस संबंध में किए जा रहे गलत दावों उन्हें ठेस पहुंचा रहा हैं। सेंगोल को सौंपे जाने के प्रमाण से जुड़े एक सवाल पर आदिनाम ने कहा कि 1947 में अखबारों और पत्रिकाओं में छपी तस्वीरें व खबरों सहित इसके कई प्रमाण हैं।
कई राजवंशों में खास रहा है राजदंड
राजदंड उन तीन आधारभूत शक्तियों में से एक रहा है, जो राजा और राज्य की संप्रुभता का प्रतीक रही हैं। इनमें राजदंड के अलावा मुकुट या छत्र और पताका भी प्रमुख रहे हैं। जहां पताका के जरिए राज्य की सीमा निर्धारित होती थी, तो वहीं छत्र और मुकुट प्रजा के बीच राजा की मौजूदगी का प्रतीक थी और राजदंड, राजा की आम सभा में न्याय का प्रतीक रहा है। इतिहास के कालखंड से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजदंड का प्रयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) में भी हुआ करता था। मौर्य सम्राटों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए राजदंड का इस्तेमाल किया था। चोल साम्राज्य (907-1310 ईस्वी) के अलावा गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी), और विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी) के इतिहास में भी राजदंड प्रयोग किया गया है। अभी हाल ही में ब्रिटेन में प्रिंस चार्ल्स का कोरोनेशन करते हुए उनके हाथ में राजदंड की ही प्रतीक एक छड़ी थमाई गई है। ये इस बात की गवाह है कि शाही वस्तुओं में राजदंड सबसे अहम तथ्य और शब्द रहा है, जिसे राजा और राज्य की शक्तियां तय करने की क्षमता मिली हुई है।
तमिल संस्कृति से जुड़ा है सेंगोल
जानकारी के मुताबिक, तमिल संस्कृति में सेंगोल का बहुत महत्व है। सेंगोल शक्ति, न्याय का प्रतीक है। यह सिर्फ 1,000 साल पहले की कोई चीज नहीं है। चेर राजाओं के संबंध में तमिल महाकाव्य में भी इसका उल्लेख है। प्राचीन काल से राजदंड के तौर पर जाना जाता रहा है। यह राजदंड सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि राजा के सामने हमेशा न्यायशील बने रहने और प्रजा के लिए राज्य के प्रति समर्पित रहने के वचन का स्थिर प्रतीक भी रहा है।