हल्द्वानी: वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई रविवार को मनाया जा रहा है। यह पर्व प्रकृति व मानव के बीच के बीच के रिश्ते को दर्शाता है जो चैत्र संक्रांति में मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर छोटे बच्चे काफी उत्साहित रहते हैं। घर की देहरी को प्योली, बुरांश, सरसों, आडू आदि रंगबिरंगे फूलों से सजाते हैं।
इसके अलावा वह फूल देई छम्मा देई कहते हुए लोगों के घर भी त्योहार की बधाई देने पहुंचते हैं जहां उन्हें उपहार के रूप में भेंट मिलती है। गांव के लोग घर में बोए हरेले की टोकरियों को गांव के चौक पर इकट्ठा करके उसकी सामूहिक पूजा करते हैं। हरेले के तिनके सभी परिवारों में बांटे जाते हैं और फिर नौले पर जाकर इसे विसर्जित किया जाता है।
बाल स्वरों में परिवार की खुशहाली और घर की समृद्धि की कामना समाए रहती है। पहाड़ की विशेषता है कि जीवन में तमाम चुनौतियां, संकट होने के बाद भी सामाजिक उल्लास में कमी नहीं रहती। फूलदेई भी कुछ ऐसा ही पर्व है। फूलदेई को सामाजिक उल्लास व प्रकृति प्रेम के रूप में हमेशा से मनाया जाता रहा है। प्रकृति से जो उपहार हमें दिए हैं, उन्हें खुद में समाहित करने व आभार जताने का पर्व फूलदेई है।
फूलदेई के अलग तरह का त्योहार हैं,जिसके आने से प्रकृति का स्वरूप बदल जाता है। हर तरफ हरियाली व नएपन की ऊर्जा हर कोई महसूस करता है। ऋतुरैंण व चैती गीत गाए जाने लगते हैं। फूलदेई से ही भिटौली का महीना शुरू हो जाता है। भाई अपनी विवाहित बहन को भिटौली (उपहार) देने उसके ससुराल जाता है या फिर उपहार भेजता है।