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मसूरी के ‘मौण मेले’ पर कोरोना का साया,1866 से होता आ रहा है मेले का आयोजन


मसूरी के 'मौण मेले' पर कोरोना का साया,1866 से होता आ रहा है मेले का आयोजन

देहरादूनः कोरोना के वजह से मसूरी के पास जौनपुर में हर साल होने वाला ऐतिहासिक मौण मेला इस साल नहीं होगा। मौण मेला समिति ने यह फैसला लिया है। जौनपुर में यह मेला वर्ष 1866 से आयोजित होता आ रहा है। मौण मेले में क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों के साथ ही देश-विदेश से कई लोग इस मेलें मेें शामिल होते हैं। यह मेला और सभी मेलों से काफी अलग हैं। जानिए…..

बता दें कि मौण मेले में लोग नदी में मछलियों को पकड़ने के लिए उतरते हैं। मेले से पहले यहां अगलाड़ नदी में टिमरू के छाल से निर्मित पाउडर डाला जाता है। इससे मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती हैं। इसके बाद उन्हें पकड़ा जाता है। इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं। जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं, वह बाद में ताजे पानी में फिर से जीवित हो जाती हैं। मंगलवार को मौण मेला समिति की बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि मेले के आयोजन में सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन होना मुश्किल है। इसके चलते इस साल मेला आयोजित नहीं किया जाएगा

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मौण मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था। तब से जौनपुर में हर साल मेले का आयोजन किया जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें टिहरी नरेश स्वयं अपने लाव लश्कर एवं रानियों के साथ मौजूद रहते थे। मौण मेले में सुरक्षा की दृष्टि से राजा के प्रतिनिधि उपस्थित रहते थे। सामंतशाही के पतन के बाद सुरक्षा का जिम्मा ग्रामीण स्वयं उठाते हैं और किसी भी प्रकार का विवाद होने पर क्षेत्र के लोग स्वयं मिलकर मामले को सुलझाते हैं। यह मेला पूरे भारत में अपने आप में अलग किस्म का मेला है, जिसका उद्देश्य नदी और पर्यावरण को संरक्षित करना है। ताकि नदी की सफाई हो सके और मछलियों के प्रजजन में मदद मिल सके। इस साल मेले का आयोजन न होने के वजह से मेले मेें शामिल होने वाले लोग काफी मायूस हैं।

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