कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के बाद से स्कूल बंद हैं। परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं। हर कोई आर्थिक तंगी का सामना कर रहा है। इस बीच कई निजी स्कूल को लेकर शिकायत भी सामने आई हैं कि वह फीस जमा करने को लेकर अभिभावक पर दवाब डाल रहे हैं। इस मामले में हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने मैसेज, ईमेल, फोन से अभिभावकों पर बच्चों की फीस के लिए दबाव डालने पर रोक लगाया है। कोर्ट ने ब्लाक शिक्षा अधिकारियों को नोडल अधिकारी बना दिया है। नैनीताल हाईकोर्ट ने साफ किया है कि सरकार फीस मामले मेें अभिभावकों की शिकायत पर नियम के अनुसार कार्रवाई करें।
देहरादून निवासी कुंवर जपिंदर सिंह व अधिवक्ता आकाश यादव की जनहित याचिका पर सुनवाई मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ वीडियो कांंफ्रेंसिंग के माध्यम से हुई। कोर्ट को स्कूलों की मनमानी को लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा देने वाले स्कूल ही ट्यूशन फीस मांग सकते हैं। अगर कोई ऑनलाइन क्लासेज नहीं चल रही हैं तो कोई फीस नहीं ली जाएगी।
प्राइवेट व सरकारी स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर अभिभावकों पर दबाव डाल रहे हैं। प्राइमरी बच्चों से भी ऑनलाइन के नाम पर फीस वसूली की जा रही है। जबकि उनके लिए ऑनलाइन क्लास नहीं लगाई जा रही हैं। याचिका में निजी व सरकारी स्कूलों में कोरोना को लेकर स्थिति साफ होने के बाद ही अभिभावकों से ट्यूशन फीस ली जाए।
ट्यूशन फीस के बहाने अन्य शुल्क ना लिया जाए और ना ही अगले सत्र में फीस में बढ़ोत्तरी की जाए। कक्षा पांच तक के बच्चों से किसी तरह की फीस ना ली जाए। सरकार की ओर से मुख्य स्थाई अधिवक्ता परेश त्रिपाठी ने कहा कि लॉकडाउन में जिन बच्चों के पास ऑनलाइन सुविधा नहीं है, दूरदर्शन के माध्यम से पढ़ाई की जा रही है। सरकार ने पब्लिक स्कूलों को इस संबंध में दिशा-निर्देश दिए हैं। जबकि याचिकाकर्ता की अधिवक्ता अभिलाषा बेलवाल ने कहा कि पब्लिक स्कूल अभिभावकों को व्हाट्सएप व ई मेल करके फीस के लिए दबाव डाला जा रहा है।
खंडपीठ ने सरकार से जवाब मांगा है कि एलकेजी-यूकेजी कक्षा के बच्चों को किस तरह ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है। कितने प्रतिशत बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। कितने विद्यालयों द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई करवाई की जा रही है। कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद नियत कर दी।