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देवभूमि का था सिर पर हाथ, बेटे कमलेश ने दूसरी बार नाप डाली एवरेस्ट


नई दिल्ली: पहाड़ में जन्म लिया और पहाड़ नापने के शौक ने उसे इस कदर अपने वश में कर लिया था कि उसने दुनिया की सबसे बड़ी एवरेस्ट को अपनी कामयाबी के सामने छोटा साबित कर लिया। पहाड़ नापने के जूनून ने उसे एक नहीं दो बार इतिहास रचने का मौका दिया जिसमें उनसे सफलता हासिल की। हम बात कर रहे है कमलेश बौंठियाल की। पौड़ी जिले के एकेश्वर ब्लाक स्थित ग्राम गोंछीखेत निवासी बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) के इस जवान में पहाड़ नापने का वरदान देवभूमि ने जन्म के वक्त दे दिया था, तभी तो वो अपने जीवनकाल में हिमालय की करीब एक दर्जन दुरूह चोटियों का आरोहण कर चुका है।

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बता दें कि कमलेश बीएसएफ में निरीक्षक के पद पर तैनात हैं। वर्तमान में बीएसएफ की ओर से देहरादून में साहसिक खेल प्रशिक्षक के तौर पर कमलेश के नाम हिमालय की कई दुरूह चोटियां फतह करने का रिकॉर्ड रहा है।

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हिमालय नापने के जुनून में दूसरी बार फतह की एवरेस्ट की चोटी

गोंछीखेत निवासी भगवती प्रसाद बौंठियाल के बेटे कमलेश के दूसरी बार एवरेस्ट फतह करने के बाद पूरे क्षेत्र में दिवाली जैसा माहौल है। निजी अखबार से हुए बातचीत में कमलेश ने बताया कि 21 मई की सुबह टीम लीडर पद्मश्री लवराज सिंह धर्मशक्तु के नेतृत्व में बीएएफ के सभी 15 सदस्यों ने एवरेस्ट का आरोहण किया।

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उन्होंने जानकारी दी कि उनके दल को दिल्ली में बीएसएफ हेड क्वार्टर से खेल मंत्री राज्यवद्र्धन राठौर ने टीम झंडी दिखाकर रवाना किया था। साठ दिन के इस एडवेंचर में सभी सदस्य अपनी मंजिल को छूने में कामयाब रहे। कमलेश बौंठियाल ने सतपुली में शिक्षा प्राप्त की। अपनी पहाड़ में चढ़ने के कौशल के कारण ही बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) में कमलेश का चयन हुआ।

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साल 2006 में कमलेश ने पहली बार एवरेस्ट फतह की। उसके बाद उन्होंने पहाड़ चढ़ने के कई रितॉर्ड अपने नाम किए।साल  2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने कमलेश को तेनङ्क्षजग नोर्गे राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था।

 

खबर सोर्स-दैनिक जागरण

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