गर्मी और बरसात के दिनों में सांप ज्यादा देखे जाते हैं। बिल में गर्मी होने के कारण या पानी भर जाने की वजह से उन्हें बाहर आना पड़ता है। नैनीताल जिले के कुररिया खट्टा गांव, जो कि बिंदूखत्ता क्षेत्र के अंदर आता है, वहां एक दुर्लभ प्रजाति का सांप बहुत सालों बाद देखा गया। यह दुर्लभ रेड कोरल कुकरी सांप पहली बार 1936 लखीमपुर खीरी में दिखा था। इसके बाद 2015 में भी इसे वन विभाग के विशेषज्ञों द्वारा बिंदूखत्ता क्षेत्र में ही देखा गया था।
रेड कोरल कुकरी के नाम में ‘कुकरी’ गोरखाओं के एक चाकू नुमा हथियार से पड़ा है जो थोड़ा घुमावदार होता है। क्योंकि रेड कोरल के दांत कुकरी की तरह घुमावदार होते हैं। ये सांप रात में ज्यादा गतिविधि करते हैं और चमकीले लाल रंग के होते हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि यह सांप जहरीला नहीं होता और जिंदा रहने के लिए कीड़ों का भोजन करता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘ओलिगोडोन खेरिएन्सिस’ (Oligodon kheriensis) है। कुररिया खट्टा गांव मैं रहने वाले कविंद्र कोरंगा सांपों के रेस्क्यू का काम करते हैं। सुबह उन्हे ग्रामीणों का फोन आया तो उन्होंने वन प्रभाग को भी सूचित किया। इसके बाद सांप को ग्रामीणों से रेस्क्यू कर जंगल में छोड़ दिया गया।
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दिलचस्प बात यह है कि यह सांप उत्तराखंड में अब तक केवल 2 बार जिंदा और एक बार मृत देखा गया है। दुर्लभ प्रजाति का होने के कारण यह सांप वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के शेड्यूल 4 में आता है। इसके बचाव के लिए जीव विज्ञानी प्रयासरत है इस सांप को एक बार दुधवा टाइगर रिजर्व उत्तर प्रदेश और एक बार नेपाल में भी देखा गया है यहां अधिकतर जमीन के नीचे ही रहता है।