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हल्द्वानी:दिवाली की झालर बनाकर कोटाबाग की ये महिलाएं दे रही हैं चाइना को टक्कर


हल्द्वानी: दीपावली का त्योहार बस देहलीज पर पहुंचने ही वाला है। हर साल की तरह इस साल भी लोगों के भीतर दिवाली को ले कर जो उत्साह है, वो देखते ही बनता है। लेकिन इस बार की दिवाली में कुछ बहुत अलग है, नए अनुभव के साथ साथ नई ऊर्जा और नई सोच भी लोगों में लगातार देखने को मिल रही है। दो कारणों की वजह से इस साल दीपावली लोगों के लिए स्वरोजगार के भी भरपूर मौके ले कर आई है। एक तो कोरोना की वजह से पड़ी जेब पर चोट और इस साल चाइना से भारत के रिश्ते खराब होने के वजह से लोग आत्मनिर्भर होने का मन बनाए हुए हैं और चाइना के प्रोडक्ट्स को बॉयकॉट कर रहे हैं। लोग स्वदेश के उत्पादों को बढ़ावा दे रहे हैं और आत्मनिर्भर भारत कि मुहिम में अपनी तरफ से बेशकीमती योगदान कर रहे हैं।

इसी बीच कई लोगों ने खुद के बनाए उत्पादों से चाइना के बहुप्रसिद्ध प्रोडक्ट्स को टक्कर देना शुरू भी कर दिया है और अब उत्तराखंड वासी बेहतर से बेहतर क्वालिटी का सामान उपभोक्ताओं के लिए ला रहे हैं। महिलाएं भी लोकल फॉर वोकल में अपना हाथ बढ़ा रही हैं। नैनीताल जिले के कोटाबाग विकासखंड की 25 महिलाएं घर में ही विशेष तरीके की लाईट झालरों का निर्माण कर रही हैं। ये झालरें ऐसी हैं जो ना तो पानी से खराब होती है और ना ही एक बल्ब खराब होने का असर पूरी माला पर पड़ता है। सहायता समूहों से जुड़ी ये महिलाएं दिन में 7 घंटे काम कर सजावटी झालरों का निर्माण कर रही हैं, जो कि लोगों को भी खासा पसंद आ रही हैं और साथ ही साथ चाइना की दीपावली मार्केट पर भी बहुत प्रभाव डाल रही हैं।

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कोरोना के आने के बाद से ही हमने स्वरोजगार के कई सारे उदाहरण देखें हैं जहां ख़ास कर युवा और महिलाएं अपनी मेहनत और दिमाग से आत्मनिर्भर होने की तरफ बढ़े हैं और कई सारे लोग ऐसे हैं जो पहले से आत्मनिर्भर होने के बावजूद अनेकों लोगों को ट्रेनिंग दे कर उनके लिए मार्गदर्शक बन रहे हैं। झालरों की इस नई मार्केट को नैनीताल में भी काफी बढ़ावा मिल रहा है। क्षेत्र की 25 महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए रोजगार का अनोखा रास्ता बुन रही हैं। इन महिलाओं को बिजली मालाएं बनाने की ट्रेनिंग मिल रही है पहाड़ की मीना डोगरा से।

मीना डोगरा ने इससे पहले 10-12 साल बड़ी कम्पनियों में भी काम किया है। जिसके बाद उन्होंने एक इलेक्ट्रॉनिक कि दुकान से अपनी इस कला को और रमा किया। हाल में उन्हें नाबार्ड की ओर से गठित स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। वे गांव की अनेकों महिलाओं को लाईट मालाएं और झालरें बनाना सिखा रही हैं। मीना डोगरा ने बताया कि महिलाएं सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक काम कर रोज़ाना करीब 60 से 70 झालरों को बना कर तैयार करती हैं। मीना के अनुसार लोग भी इन झालरों को खासा पसंद कर रहे हैं और इसकी बिक्री भी बहुत तेज़ी से हो रही है।

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मीना डोगरा ने बताया कि लड़ियों कि खासियत का सारा श्रेय उसकी गुणवत्ता को जाता है। उनके अनुसार ये लड़यां चाइनीज झालरों की तरह जल्दी खराब नहीं होती। ख़ास कर एक या दो बल्ब खराब होने से पूरी माला खराब नहीं होगी। इसके अलावा मीना डोगरा ने बताया कि चाइनीज झालरों में पानी पड़ने के बाद शॉर्ट सर्किट का खतरा रहता है मगर स्वदेशी मालाएं पानी से भी खराब नहीं होंगी। इसके अलावा महिलाओं को LED बल्ब बनाने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। मीना डोगरा ने कहा कि कुछ समय पहले तक वे 1 दिन में 1000 ऐसे बल्ब बना कर तैयार कर लेती थी मगर कच्चा माल ना मिलने से फिलहाल बल्ब का काम बंद कर दिया गया है।

वाकई में इस दिवाली कुछ तो ख़ास और अलग है। उत्तराखंड की महिलाएं अन्य लोगों के लिए भी एक प्रेरणा का स्त्रोत साबित हो रही हैं। देश की आर्थिक मजबूती कि भी यही मांग है कि लोग इस बार विदेशी सामानों को बाय बाय कह कर स्वदेशी सामानों को अधिक खरीदें। दीपावली के मौके पर इन महिलाओं द्वारा बनाई गई उच्चतम गुणवत्ता की लाइट झालरें खरीद कर आप भी देश को सशक्त करने में एक दूसरे कि मदद कर सकते हैं। कुल मिला कर देश में और ख़ास कर हमारे प्रदेश में आत्मनिर्भरता कि एक लहर आई हुई है जो अब रुकनी नहीं चाहिए।

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