देहरादून: 23 मार्च 2018
गुरुवार को उत्तराखण्ड विधानसभा में साल 2018-2019 का बजट पेश किया। सरकार इस बजट को लोगों के लिए हितकारी बता रही है लेकिन तस्वीर कुछ और भी है जो काफी गंभीर है। विकास मार्ग पर चल रहा है उत्तराखंड कर्ज के तले दबता जा रहा है। ये शिकंजा हर साल और कसता जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में कर्ज का बोझ बढ़कर 47580 करोड़ से ज्यादा होने जा रहा है। बता दे कि राज्य सरकार को अपने खर्चों की पूर्ति के लिए ऋण लेने के लिए मजबूर होना बड़ता है। साल 2000 राज्य गठन के वक्त राज्य के हिस्से में 4430.04 करोड़ कर्ज आया था। राज्य के जन्म के साथ मिला यह कर्ज वित्तीय वर्ष 2016-17 में 40793.70 करोड़ होने का अनुमान बजट आंकड़ों में लगाया गया था।
इससे पहले वित्तीय वर्ष 2015-16 में 34762.32 करोड़ और वित्तीय वर्ष 2014-15 में यह कर्ज 30579.38 करोड़ था। 31 मार्च, 2017 तक कर्ज की धनराशि बढ़कर 41644 करोड़ हो गया था। यह कर्ज 31 मार्च, 2018 तक बढ़कर 47759 करोड़ हो रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में अब 6000 करोड़ से ज्यादा कर्ज लिया जा चुका है।
ऋणग्रस्तता की स्थिति में सरकार को अल्पबचत राशि के भुगतान से कुछ राहत मिलने जा रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 31 मार्च, 2018 तक राज्य पर ऋणग्रस्तता की कुल धनराशि 41251.11 करोड़ रह जाएगी।
वित्तीय वर्ष 2018-19 में कर्ज की यह राशि 47580.42 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। दरअसल, राज्य की माली हालत खराब है। गैर विकास मदों में खर्च जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसकी पूर्ति करने में मुश्किलें पेश आ रही हैं। हालत ये है कि खर्च चलाने के लिए सरकार को गाहे-बगाहे कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। राज्य सरकार के कार्मिकों को सातवें वेतनमान का बकाया एरियर का भुगतान करने के लिए राज्य सरकार को फिर कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ सकता है। आर्थिक संसाधन बढ़ाने के लिए नए क्षेत्रों की तलाश करने में सरकार के हाथ-पांव फूल रहे हैं।