हल्द्वानी: प्रदेश को हाल ही में गैरसैंण के रूप में एक नई कमिश्नरी मिली है। लिहाजा फैसला तो ले लिया गया मगर इस फैसले के लिए किए जाने वाले इंतजाम अभी भी काफी दूर दिखाई पड़ रहे हैं। पहाड़ के दो जिलों के वासियों को गैरसैंण ले जाने के लिए कोई रोडवेज बस ही नहीं है।
लोगों को अगर अपनी नई कमिश्नरी गैरसैंण किसी काम से जाना पड़ गया तो लाजमी है कि उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। बता दें कि अल्मोड़ा और बागेश्वर जिला मुख्यालय से कमिश्नरी तक जाने के लिए सड़कें कई सारी हैं मगर उत्तराखंड परिवहन निगम की कोई भी बस यहां से गैरसैंण नहीं जाती।
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रानीखेत डिपो की एक बस रामनगर से वाया भतरौजखान होते हुए गैरसैंण और दूसरी हल्द्वानी से कर्णप्रयाग चलती है। मगर दोनों का रूट ऐसा है कि अल्मोड़ा और बागेश्वर बीच में नहीं पड़ते।
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चार मार्च को गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने की घोषणा की थी। उत्तराखंड की इस तीसरी कमिश्नरी में चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर के अलावा सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को भी शामिल किया गया। बता दें कि यह तोहफा ग्रीष्मकालीन राजधानी के गठन की पहली वर्षगांठ पर दिया गया था। मगर मुश्किल यह है कि पर्वतीय जिलों से गैरसैंण के लिए कोई सीधी बस नहीं है। हालांकि, अब लोगों की समस्या को देखते हुए बस संचालन की जरूरत पड़ेगी।
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आरएम नैनीताल यशपाल सिंह ने बताया कि भविष्य में गैरसैंण के नजदीकी कोटद्वार डिपो की बसें बागेश्वर व अल्मोड़ा मार्ग पर चल सकती है। बताया कि अगर निगम मुख्यालय आदेश करेगा तो अल्मोड़ा डिपो की बसें भी भेजी जाएंगी।
केमू अध्यक्ष सुरेश डसीला के अनुसार कुमाऊं से कोई भी केमू बस कर्णप्रयाग या गैरसैंण नहीं जाती। गढ़वाल बॉर्डर ग्वालदम लास्ट स्टेशन है, जहां से आगे लोकल बसों का सहारा लेना पड़ता है। रोडवेज की माने तो अब रोडवेज से सफर करने को बागेश्वर व अल्मोड़ा के लोगों को हल्द्वानी या रानीखेत आना पड़ेगा।
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