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जो फर्ज बेटे निभाते हैं उसे बहुओं ने निभाया, हल्द्वानी में सास की अर्थी को दिया कंधा


हल्द्वानी: वैसे तो लोग यह कहते हैं कि सास-बहु का रिश्ता बहुत ही नोकझोंक से भरा रिश्ता रहता है। हो ना हो समाज में सास-बहुओं की तस्वीर फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में तो ऐसी ही दिखाई जाती है। मगर क्या वाकई ज़मीनी तौर पर यह बात सच है। हल्द्वानी से आ रही एक खबर के अनुसार तो ऐसा कतई नहीं लगता।

हल्द्वानी गौलापार के तारानवाड़ गांव में बहुओं ने 84 साल की अपनी सास की अर्थी को कंधा दे कर मिसाल पेश की है। यह दृश्य इतना मार्मिक था कि लोगों के आंसू भी नहीं रुक रहे ते और साथ ही प्रेम की इतनी खूबसूरत तस्वीर देख कर सबका हृदय प्रसन्न था।

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हमारे समाज में बहुत सालों से कुछ एक रूढ़ीवादी परंपराएं चलती आ रही हैं। जिसमें से ज़्यादातर परंपराएं तो आसी हैं जिसमें महिलाओं को प्रताड़ित होना पड़ता है। अगर कहीं इक्का दुक्का महिलाएं इन सब के खिलाफ आवाज़ उटाती भी हैं तो बाकी के लोग उनकी आवाज़ को दबाने या कम करने के लिए एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगा देते हैं। फिल्हाल इसी तरह की एक परंपरा यह भी है कि औरतें ना तो अर्थी को कंदा दे सकती हैं और ना ही शमशान घाट में जा सकती हैं।

इसी परंपरा पर प्यार की चादर चढ़ाई है स्व. बसंती रौतेला की दो बहुओं ने। दरअसल रविवार को 84 वर्षीय बसंती रौतेलीा का निधन हो गया। जब शव यात्रा शुरू करने की बारी आई तो अर्थी को कंधे पर रख कर तैयार हो गईं, बसंती रौतेला की दो बहुएं। मोनिका रौतेला (भतीजे की पत्नी) और रीता रौतेला (पोते की पत्नी) ने अपनी सास को तकरीबन एक किमी तक कंधा दिया।

इस दौरान कई लोग उनको केवल देखते रहे। क्योंकि महिलाओं द्वारा इतना मजबूत कदम उठा लेने के बाद किसी के अंदर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं थी। बहरहाल शवयात्रा के रानीबाग स्थित घाट पहुंचने पर अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। जिसमें चिता को मुखाग्नि देने का काम पोते नवीन रौतेला, योगेश रौतेला और भतीजे जगमोहन रौतेला ने दी।

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