हल्द्वानी: मनीष पांडे: द फ़ैमली मैन अमेज़न प्राइम की वेब सीरीज़ है। इसके बारे में मेरी टिप्पणी यही रहेगी कि यह अभी तक बनी भारतीय वेब सीरीज़ में टॉप 5 में रखी जा सकती है। इसका यह मतलब नहीं है कि यह ग़ज़ब की सिरीज़ है। इसका मतलब यह है कि मीडियोक्रेसी या एवरेज काम को सराहने वाले हमारे समाज में जिस तादाद में घटिया सामग्री वेब सिरीज़ के नाम पर परोसी जा रही है, उसमें यह वेब सिरीज़ ठीक ठाक खेल दिखा जाती है।
अब चलिए इसकी कहानी, एक्टिंग, दर्शन पर बात करें।
कहानी वही है जो सामान्य जासूसी भारतीय वेब शो की हो सकती है। पाकिस्तान को भारत से बदला लेना है। बदला इसलिए लेना है क्योंकि कश्मीर पर कब्ज़ा नहीं हो सका। इसलिए पाकिस्तान के कुछ आतंकी, भारतीय आतंकी जो आईएसआईएस को ज्वाइन कर चुका है, के साथ भारत भूमि में आतंक मचाने के लिए क़दम रखते हैं। मगर मुस्तैद नौसेना के लोग इन्हें पकड़ लेते हैं। अब पाकिस्तान को अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए भारत में ही से कुछ लोग चाहिए होते हैं जो भारत से नफ़रत करते हों। उन्हें एक लड़का मिलता है। उसे सब काम सौंप देते हैं। लड़का अपने काम को अंजाम देने वाला होता है कि एक बार फिर भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी की मेहनत रंग लाती है और देश सुरक्षित रहता है। मगर यहां पाकिस्तान का प्लान बी काम करता है। आईएसआईएस आतंकी को छुड़ाया जाता है और उसके दिल्ली शहर को केमिकल डिजास्टर के मुंह में झोंक दिया जाता है। उसी वक़्त के ऐसी घटना घटती है और कहानी में ट्विस्ट आता है। यही से अगले सीज़न की नींव पड़ जाती है। ट्विस्ट क्या आता है इसके लिए वेब शो देखें।
अब बात अभिनय की। मनोज वाजपेई, दिलीप ताहिल, शरद केलकर, अभिनेत्री प्रियामनी, गुल पनाग सभी अच्छे एक्टर हैं। इस कारण सभी की परफॉर्मेंस बढ़िया दिखी है और एक आम सी कहानी वाले शो में दम सा आ गया है। एक्टर शरीब हाशमी का काम भी बढ़िया है। एक्टिंग पर यही टिप्पणी है कि एक्टिंग बढ़िया है। अलग से चर्चा करनी पड़े तो मनोज वाजपेई के अभिनय की चर्चा की जानी चाहिए। एक पारिवारिक जीवन जीने की वाले इंटेलिजेंस ब्यूरो अफ़सर की जो छवि मनोज बाबू ने खींची है उसके पूरे नंबर उन्हें मिलने चाहिए। सिनेमा में यही खेल है। दर्शक को विश्वास हो जाए कि जो वह देख रहा है वह सच है। मनोज बाबू की कन्विसिंग पॉवर अद्भुत है और यह वेब शो में नज़र आया है।
कहानी सामान्य ज़रूर है मगर स्क्रीनप्ले अच्छा है। शुरू से जोड़ लेती है सीरीज। कहीं कहीं कुछ लंबी लगती है मगर फिर कोई घटना होती है और फिर रोमांच आ जाता है।
इस वेब सीरीज़ के तीन मुख्य आउटपुट हैं।
पहला यह कि समय के साथ समाज बदल गया है। आज बच्चे माता पिता दोस्त से ज़्यादा तकनीक से जुड़े हैं। सूचनाएं बहुत तेज़ी से ट्रांसफर हो रही हैं। इसलिए माता पिता के लिए ज़रूरी है कि वह पेरेंटिंग के नए तौर तरीकों को सीखें। नहीं तो उनके और बच्चों के बीच की दूरी बढ़ती ही चली जाएगी। यह बच्चों के लिए बहुत खतरनाक परिणाम लेकर आ सकता है।
दूसरा पहलु है एक कामकाजी शादीशुदा जोड़े का। कामकाजी जीवन आज भयंकर स्ट्रेस से भरा है। लोगों को सांस लेने की फुरसत नहीं। नींद की गोलियां आदत बन गई हैं। ऐसे में जब पति पत्नी दोनों साथ में समय नहीं बिता पाते तब किस तरह विवाहेत्तर संबंधों की शुरुआत होती है इसकी झलकी है वेब शो में। हालांकि अब एडल्ट्री, होमो सेक्सुअलिटी क्राइम नहीं है फिर भी वेब शो इन दोनों मुद्दों को सतही तौर पर छू जाता है।
तीसरा मुद्दा थोड़ा गंभीर है। जिस तरह आज देश में साम्प्रदायिकता हावी हो चुकी है। गौ हत्या के नाम पर लिंचिग हो रही है। हिन्दू मुस्लिम एकता सिर्फ़ खोखली बात रह गई है। कश्मीर समस्या मुंह खोले खड़ी है। इस सब को लेकर बहुत सच्ची तस्वीर पेश की है। टीवी, अख़बार की पिछले कुछ समय की ख़बरें आंखों के सामने से गुज़र गई।
कुल मिलाकर यह एक सही वेब शो है। मजबूत अभिनय इसको रोचक बना देता है। देख लीजिए अगर नहीं देखी हो अब तक।