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संघर्ष मतलब सविता प्रधान गौड़, ससुराल और समाज से लड़कर बनीं सरकारी अफसर

नई दिल्ली: “दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना गम है।” जब साल 1986 में आनंद बख्शी ने अमृत फिल्म (Anand Bakshi Amrit film) के लिए ये गाना लिखा होगा तो उन्होंने ना जाने कितनी ही कहानियों को एक पंक्ति में पिरोया होगा। आज के समय में अगर इस लाइन को जीवन में उतारा जाए तो बिल्कुल सटीक बैठती है। जीवन की भागदौड़ में हर किसी की अपनी यात्रा है। आज आपसे जिस यात्रा (Positive viral story) को हम रूबरू कराने जा रहे हैं, उससे निश्चित तौर पर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे। यह तय है कि ये कहानी महिलाओं को खासतौर पर प्रेरणा देगी। हम आज सविता प्रधान गौड़ की बात कर रहे हैं।

सविता प्रधान गौड़ (Savita Pradhan Gaur), ग्वालियर नगर प्रशासन की ज्वाइंट डायरेक्टर (Joint Director)…पद के नाम से अंदाजा लगाना मुश्किल है कि सविता प्रधान के जीवन में उन्होंने किन कष्टों को झेला है। पढ़ाई लिखाई के सपने छोड़ 17 साल की छोटी उम्र में शादी हो जाना, फिर ससुरालियों द्वारा प्रताड़ित किया जाना, आत्महत्या की कोशिश से लेकर सरकारी नौकरी का रास्ता खोज निकालना…सविता प्रधान किसी मिसाल से कम नहीं हैं। आपको बता दें कि सविता प्रधान का जन्म एक आदिवासी परिवार में हुआ था और 10वीं व 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाली वह अपने गांव की पहली बालिका थी।

जिस ज़माने में बेटियों को पढ़ाना पाप माना जाता था, उस समय सविता के परिवार ने उन्हें पढ़ाया। डॉक्टर बनने का सपना देख रही सविता का जीवन तब पलट गया जब एक बड़े नामी परिवार ने उसके लिए रिश्ता भेजा। सविता के पिता भी दूसरे परिवार की बातों में आ गए। परिवार का नाम सुनकर पिता ने सविता की इच्छा के बिना उसकी शादी करा दी। बेटी के लाख बार मना करने पर भी शादी करा दी गई। पिता ने अच्छा ही चाहा मगर उन्हें यह नहीं पता था कि ससुराल वाले इंसान की शक्ल में राक्षस निकलेंगे।

अपनी उम्र से 10-11 साल बड़े लड़के से शादी के चार दिन के अंदर ही सविता पर कई सारे प्रतिबंध लगा दिए गए। उसे बिना बात मारना पीटना शुरू कर दिया गया। अमुमन सविता को बाथरूम में जाकर अपना भोजन करना पड़ता था। मायके में बताने पर भी कोई लेने नहीं आया। पति कई कई दिनों तक घर से बाहर रहता था। लोगों ने कहा बच्चे होंगे तो सब सही हो जाएगा। पहले एक लड़का हुआ फिर डेढ़ साल के भीतर दूसरा लड़का भी हो गया। मगर पिटाई और प्रताड़ना का वही सिलसिला अनवरत चलता रहा। सविता बताती हैं कि एक बार उन्होंने अपने लिए फांसी का फंदा तक बना लिया था।

लेकिन फिर बच्चों का ख्यालकर फंदा हटाया और ठान लिया कि वह अपने बच्चों के लिए जिएंगी और किसी भी कीमत पर इस परिवार के लिए अपनी जान नहीं देंगी। सविता ने बड़ा फैसला किया और रिश्तेदार के यहां रहने लगीं। मां ने भी पूरा साथ दिया। इसके बाद सविता ने पार्लर में काम किया, सिलाई की और बच्चों को पढ़ाकर परिवार का पालन पोषण जारी रखा। साथ ही कई नेक दिल लोगों की मदद से बीए और एमए भी किया। सविता (Savita become government officer against all odds) की मेहनत रंग लाई और उन्होंने साल 2005 में पहली बार में ही MPPSC परीक्षा पास की।

इसके बाद उन्हें नरसिंहपुर में पहली नियुक्ति Chief Municipal Officer के रूप में मिली। हालांकि, पति ने अभी तक प्रताड़ित करना बंद नहीं किया था। बाद में पुलिस की मदद से सविता ने पति को सबक सिखाया और तलाक भी ले लिया। जोश टॉक्स से बात करते हुए सविता ने बताया कि वह 17 साल से अधिक समय से नौकरी कर रही हैं और साल 2015 में उन्होंने रूढ़ीवादी परंपरा को तोड़कर दूसरी शादी भी कर ली। सविता प्रधान के बच्चे भी उन्हीं के साथ रहते हैं। वाकई सविता की कहानी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है। प्रेरणा यह है कि, यदि हम अत्याचार सहना बंद नहीं करेंगे तो अत्याचार बढ़ता जाएगा।

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