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उत्तराखंड के नाम पहला ओलंपिक मेडल, मनोज सरकार ने बदल दिया खेल का इतिहास

उत्तराखंड के नाम पहला ओलंपिक मेडल, मनोज सरकार ने बदल दिया खेल का इतिहास

रुद्रपुर: देश के लिए तो गर्व की बात है ही कि मनोज सरकार ने पैरा ओलंपिक बैडमिंटन खेल में कांस्य पदक जीत लिया है। लेकिन प्रदेश के लिए तो मनोज ने इतिहास की बदल कर रख दिया है। रुद्रपुर निवासी मनोज सरकार उत्तराखंड के पहले खिलाड़ी बन गए हैं जिन्होंने ओलंपिक मेडल जीता है। लाजमी है कि देवभूमि की एक पूरी पीढ़ी इस कारनामे से प्रभावित होने वाली है।

टूर्नामेंट का लेखा जोखा

अर्जुन अवार्डी मनोज सरकार पैरा बैडमिंटन खेल की एसएल-3 श्रेणी में प्रतिभाग कर रहे थे। टोक्यो के योयोगी नेशनल स्टेडियम में चल रही पैरा बैडमिंटन प्रतियोगिता में मनोज सरकार का सफऱ आसान नहीं रहा। उन्होंने युक्रेन के अलेक्जेंडर को आसानी से 2-0 से हराकर सेमीफाइनल मुकाबले में जगह जरूर बनाई।

मगर सेमीफाइनल मुकाबले में यूके के डेनियल बेथल ने दो सेटों में 21-8, 21-10 के स्कोर से मनोज को हरा दिया। मगर एक चांस अब भी बाकी था। ब्रांज मेडल के लिए मनोज सरकार का मुकाबला जापान के देयसुख से हुआ। निराशा को अपने जज्बे पर हावी ना होने देते हुए मनोज ने भारत को एक और मेडल दिला दिया।

भावुक हुए मनोज

मां-बेटे के रिश्ते के बीच की भावुकता मनोज सरकार के कांस्य पदत जीतने के बाद देखने को मिली। मैच जीतने के बाद अमर उजाला से हुई बातचीत में मनोज सरकार ने अपनी मां को याद किया। उन्होंने कहा कि आज अगर मां होती तो वह बेहद खुश होतीं।

गौरतलब है कि हाल ही में मनोज को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया था। तब वह अपनी मां और कोच गौरव खन्ना के साथ ही राष्ट्रपति भवन गए थे। मां को जब उन्होंने अवार्ड थमाया तो वह भावुक हो गईं थीं। वाकई ये पल मनोज के लिए भावुक करने वाला था।

उत्तराखंड को गर्व

देवभूमि में खेलों के प्रति युवाओं का रुझान देखते ही बनता है। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि उत्तराखंड में जितना बढ़ावा क्रिकेट को दिया जाता है, उतना ही किसी और खेल को भी दिया जाता है। माता-पिता भी बच्चों को खेलने से रोकते नहीं है। मैदानी इलाकों से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों में, देवभूमि के युवाओं की दिनचर्या खेलों के बिना कभी पूरी नहीं होती।

रुद्रपुर के मनोज सरकार ने कांस्य पदक जीतकर दिखा दिया कि उत्तराखंड भले ही क्षेत्रफल में बाकी राज्यों से छोटा है मगर प्रतिभाएं यहां पर भी बहुत बड़ी हैं। बता दें कि पैरा ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के साथ मनोज सरकार उत्तराखंड की तरफ से ओलंपिक मेडल जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन गए हैं।

लाजमी है कि अगर घर का एक जन भी बड़ा कारनामा कर दिखाता है तो बाकी के लोगों का सीना चौड़ा हो जाता है। मनोज की इस जीत में इतिहास बदलने की खुशबू है। हो ना हो, ये जीत देवभूमि की मौजूदा पीढ़ी के साथ आने वाली पीढ़ियों को भी खेलों के प्रति आकर्षित करने वाली है।

घरों में पेंट व पीओपी भी किया

आज जरूर मनोज सरकार के कमाल को दुनिया देख रही है। हर तरफ मनोज की तारीफ हो रही है। लेकिन एक वक्त था ये जब ये सब सिर्फ एक सपना सा लगता था। बचपन में बैडमिंटन का रैकेट और शटल खरीदने के लिए मनोज को दूसरों के घरों में पीओपी व पेंट का का काम करना पड़ता था। मनोज बताते हैं कि मां से रुपए लेकर पहली बार एक जोड़ी रैकेट खरीदा था।

13 साल की उम्र में ही गलत इंजेक्शन के कारण मनोज का पैर कमजोर हुआ तो घरवालों को चोट का डर सताने लगा था। इसलिए वे खेलने के लिए मना करते थे। लेकिन मनोज के हौसले ने घरवालों को भी मना लिया। जैसे जैसे मनोज की उम्र बढ़ी बैडमिंटन के प्रति उनका रुझान और बड़े मैच जीतने की भूख भी बढ़ती चली गई।

मनोज बताते हैं कि खेल का जुनून इस कदर हावी था कि एक वक्त रैकेट और शटल के पैसे जुटाने के लिए घरों में पेंट, पीओपी से लेकर खेतों में मटर तक तोड़े। निराशा तब हुई जब 2003-04 में अच्छा खेलने के बाद भी सेलेक्शन नहीं हुआ। 2007 में मौका मिला तो काशीपुर स्टेडियम में बैडमिंटन हॉल पहली बार देखा।

इसके बाद पहले स्टेट सेलेक्शन अल्मोड़ा में पहले दौर में और फिर अगले वर्ष राज्य स्तरीय ट्रायल में दूसरे दौर में बाहर होने के बाद मनोज को सफऱ मुश्किल लगने लगा। लेकिन फिर लक्ष्य सेन के पिता डीके सेन ने मनोज से मिलकर गुरु ज्ञान दिया। मनोज ले कहा कि सामान्य लोगों को हरा रहे हो तो दिव्यांग की श्रेणी में तो तुम धमाल मचा दोगे। फिर क्या था यहां से जो सिलसिला शुरू हुआ वो फिर थमा ही नहीं। मनोज के मुताबिक सफऱ अभी लंबा है।

बहरहाल इस समय तो मनोज सरकार के घर-परिवार में जश्न और खुशी का माहौल है। उनके घर के बाहर बधाई देने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी है। पीएम मोदी ने भी मनोज से लंबी बात कर उन्हें बधाई दी है। साथ ही सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भी बधाई संदेश दिया है।

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